- 😊नवगीत के नादान दोस्त💐👌😢💐😢💐😊💐☺️👍💐# भारतेंदु मिश्रएक समय में डॉ.शंभुनाथ सिंह ने नवगीत को लेकर जो कार्य किया था उस पर नवगीत के नादान दोस्तों ने ही बहुत हद तक कालिख पोतकर उसे धूसर कर दिया| रमानाथ अवस्थी,गोपालदास नीरज, जैसे कवियों के रास्ते पर चलकर या कुमार विश्वास को आदर्श मानकर जो कवि आगे बढ़ रहे हैं उनमें साफ़ तौर से मंचीयता, पैसे और तालियों की भूख नजर आती है| सरोकार वाली श्रेष्ठ कविता का वह मार्ग नहीं है| वह बाजारूपन कमसे कम नवगीत का लक्ष्य कभी नहीं रहा| ऊपर दिए नाम तो संकेत मात्र हैं ऐसे अनेक और भी हैं| ये सार्थक कविता के प्रतिनिधि कैसे माने जा सकते हैं| मंचीय गीत की जो गति - सद्गति या दुर्गति हो वह हो , उसका लक्ष्य कमाई है | वह तो बहुत निचले स्तर तक भी जा सकती है| ताली पिटाऊ कवियों की मांग फूहड़पन के साथ थोड़ी अश्लीलता तक उतर कर द्विअर्थी कवितायेँ गाने वाले मंचीय कवि धार्मिक या नकली वीरता और युद्ध गान सृजित करने वाले महावीर कवि आज भी मंच पर अच्छा परफार्मेंस दे रहे हैं|नवगीतकार चूंकि गीत के वंशज हैं वे भी अब इसी मंचीय कुनबे में अक्सर देखे जाने लगे हैं| मंच पर अक्सर कवि पुरानी घिसी हुई कविता ही सुनाते हैं| अक्सर देखा गया है ऐसे कवियों के पास नए मंचीय गीत कम ही होते हैं| कविसम्मेलन पर्व त्योहारों और राष्ट्रीय उत्सवों आदि पर ही अधिकतर आयोजित होते हैं तो ये कवि अपने पारंपरिक चारण भाव से उत्सवधर्मी गीत पढ़ने पहुँच जाते हैं| अच्छी बात है उनकी इस प्रवृत्ति से किसी को क्या नुकसान है| लेकिन वे जाने अनजाने नवगीत की सार्थक कविता वाली छवि का सर्वनाश भी कर रहे हैं| एक समय में शंभुनाथ सिंह जी ने ऐसे ही नवगीत कवियों को नवगीत का नादान दोस्त कहा था| हालांकि वो स्वयं मंच पर जाते थे लेकिन पाठ्यधर्मी नवगीत की उन्हें बहुत अच्छी पहचान थी| जैसा कि मैं कई बार कह चुका हूँ कि-‘‘हर गीत नवगीत नहीं होता और हर गीतकार नवगीतकार नहीं होता| लेकिन नवगीत के लिए गीत का शरीर आवश्यक है|गीत और नवगीत में पिता पुत्र का संबंध है|’’ (समकालीन छंद प्रसंग) मध्यप्रदेश से इसाक अश्क जी के संपादन में ‘समांतर’ पत्रिका निकलती थी उसमें गीत और नवगीत को अलग अलग करके प्रकाशित किया जाता था| अब मंचलोलुप गीतकारों में नवगीतकार भी घुस गए हैं| दूसरी तरफ मंचीय गीतकार नवगीतकार बनने की नाकाम कोशिशें भी कर रहे हैं| तीसरे वो गीत कवि हैं जो आत्म प्रतिष्ठा के लिए गीत के नए नामकरण को लेकर व्याकुल दिखाई देते हैं| नवगीत के नादान दोस्तों ने नवगीत का कितना नुकसान किया है ये शोध का विषय है| पूर्णिमा वर्मन जी ने ‘अनुभूति’ के मंच से पिछले दशक में ‘नवगीत की पाठशाला’ का आयोजन भी किया था वहां भी लोग सार्थक पाठ्य और नवता की बात करते थे| नवगीत के परामर्श की बात होती थी अब वह मंच भी शांत हो गया है| उल्लेखनीय ये भी है कि ‘तार सप्तक’1 में तो छंदोबद्ध नई कवितायेँ भी शामिल थीं| उसे बाद के लोगों ने आदर्श नहीं माना| नवगीत का विरोध सब ओर से हुआ|नवगीत रचना की दृष्टि से यह नकारात्मक समय है | अभी गीतधर्मी दो पत्रिकाओं के ताजा अंक देखने को मिले- ‘चेतना स्रोत’ और ‘गीत गागर’ दोनों ने निराश किया| पाठ्य वाले गीत और पारंपरिक मंचीय गीत का भेद इनमे विलीन कर दिया गया है| हालांकि इन अंकों में नवगीत शिरोमणि आदरणीय माहेश्वर तिवारी, दादा बुद्धिनाथ मिश्र यश मालवीय और कीर्ति काले जैसे नवगीत के प्रबुद्ध लोग भी शामिल हैं| मंचीय गीत की रक्षा जब हम करने जाते हैं तब हम नवगीत का गला घोटने लगते हैं| फिर तभी यह भी कोशिश होती है कि नवगीत का नाम ही बदल डालो ताकि हमारी प्रासंगिकता बनी रहे| नवगीत के साधक,देवेन्द्र शर्मा इंद्र,नईम,कुमार रवीन्द्र,जैसे लोग भी अब नहीं रहे| अच्छा होता कि गीत और नवगीत का विवेक हम बचाए रहते| नवगीत के नादान दोस्त ही अब अग्रसर हैं,उनकी जय हो|
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- · 1दि
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- गीत तो गीत है नाम कुछ भी दीजिये .लोक जीवन में गीत की प्रतिष्ठा है विवाह आदि उत्सवों में गीतों का बुलावा देते समय यही कहा जाता है कि गीतों का बुलावा है चाहे लगुन सगाई या जच्चा के हों गीत को गीत रहने दो
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- · 1दि
- आदरणीय, कवि के गीत को आलोचक विश्लेषित करेगा उसकी अर्थवत्ता और उसके शिल्प के आधार पर। कुछ गीतों को लोगों ने नवगीत कहा पर वे थे नहीं ।
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- · 1दि
- जी अब तो लोगों ने गीत नवगीत को गड्डमड्ड करने की कोशिशें ही जारी कर रखी हैं।
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- · 1दि
- Bhartendu Mishrajee, उनमें अन्तर करने की समझ हो,तभी सम्भव है।
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- · 1दि
3 और जवाब देखें - सहमत हूं
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- · 1दि
- बहुत अच्छा विवेचन हैं ।
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- · 1दि
- आभार।
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- · 1दि
- नव कब तक आज का नव कल पुराना नवागता कितने दिन नवागता कहलाएगी ?नया वह जो बार बार पढ़ने पर भी नया लगे .नई कहानी अब मात्र कहानी के नाम से छप रही है नई कविता मात्र कविता .भीड़ में अलग पहचान बनाने और अपने को स्थापित करने के लिए कुछ तिकड़मी नएपन का ढिंढोरा पीटन...और देखें
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- · 1दि
- Achchhee bat kahee
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- · 1दि
- Achcha likha
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- · 1दि
- सार्थक समालोचनात्मक लेख
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- · 1दि
- आदरणीय भारतेंदु मिश्र जी आपका आलेख गीत नवगीत के वर्तमान परिपेक्ष्य को दृश्यांकित कराता है। लेकिन बहुत कुछ छूटा-छूटा और बिखरा-बिखरा -सा लगता है। आपके लेख की वैचारिकी से मैं सहमत हूं। गीत के पहले लगने वाला शब्द उसके पुराने पड़ने की संभावनाएं कितनी हैं? गी...और देखें
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- · 1दि
- · संपादित
- सब कुछ एक टिप्पणी में संभव नहीं होता।आपके कार्य से सहमत हूँ और भागीदार भी रहा हूँ।
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- · 1दि
- चेतना स्त्रोत छंदबद्ध कविता की पत्रिका है उसमें गीत, नवगीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डलिया, कवित्त तथा सवैया आदि सभी प्रकार की रचनाएं प्रकाशित होती हैं। पत्रिका में उपलब्ध स्थान का अधिकतम उपयोग करने के उद्देश्य से गीत और नवगीत को एक साथ प्रकाशित किया जाता है। ...और देखें
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- · 1दि
- · संपादित
- मृदुल जी आप के तर्क से सहमत हूँ। आपने तो स्पष्ट कर ही दिया लेकिन समीक्षक की दृष्टि से देख रहा हूँ तो नई संवेदना की नए पाठ्य वाली रचनाएँ कम आ रही हैं। युवा नवगीत कार इससे भ्रमित भी हो रहे हैं।
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- · 1दि
- गीत-धारा के विभाजन के पीछे के कारणों को चिन्हित करने की जरूरत! वैसे गीत-नवगीत को हिन्दी कविता की विभिन्न धाराओं में एक मानल लेने में कोई हर्ज! यह बहस ही नकली है, भारतेन्दु जी! इसे विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभाग के हिस्से में पड़ा रहने देना चाहिए।लो...और देखें
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- · 1दि
- मुद्दा नवगीत की नई जमीन का है। मंचीय गीत से सार्थक नवगीत को बचाने का है। जो गीत नवगीत को एक ही साबित करके मंचीय कविता के समर्थक बन गए वो समीक्षा के वक्त नवगीत की दुहाई देने लगते हैं। युवा नवगीत कारों के सामने भ्रम बन जाता है।
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- · 1दि
- Bhartendu Mishraनवगीत विधा में रचना की नयी जमीन तलाशने को रोकता कौन है?मुझे यह मुहिम नवगीत के नेतृत्व हथियाने का हिडेन एजेंडा ज्यादा लग रहा है। कथित नवगीतकारों में स्वयं को कवि मानने के बजाय नवगीतकार कहलाना ज्यादा पसंद आता है। क्यों? क्या केवल कवि होना काफी नहीं। फिर उनके बीच भी आपसी स्पर्धा भी क्या कम है ?मंचीय कविता भी एक तरह का कारोबार ही है। रचने के बजाय प्रपंच रचाने में हिन्दी की गोबर पट्टी सड़ रही है, यह सच न छिप सकता है ना ही छिपाया जा सकता है। इस पर सोचिये, बंधुवर !
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- · 1दि
2 और जवाब देखें - अच्छे भले थे ओटन लगे कपास।अनेक गीतकार,नवगीतकार तो गजलगो हो गए।अब उन गोष्ठियों की कल्पना भी नहीं कर सकता जिसमे उमाकांत मालवीय और माहेश्वर तिवारी शरद पूर्णिमा पर रात भर पाठ करते थे।अपने पाले में चीज रहे तो अच्छा लेकिन मध्य एशिया की कई संस्थाएं मुशायरों ...और देखें
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- · 1दि
- जी आदरणीय अब तो सब स्वयं के विक्रेता नजर आते हैं। सरोकारों की बात कहाँ?
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- · 1दि
- आपकी टिप्पणी गम्भीर है ,चोट भी करती है ,क्या फर्क पड़ेगा उल्टे कोई समूह इसमे भी छिद्र ढूंढ ही लेंगे।अभिवादन।
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- · 1दि
- मैं बहुत पीछे मंच छोड़ आया हूँ। अकाशवाणी, दूरदर्शन, अकादमी आदि के अलावा बाजारू कविसम्मेलन में नहीं जाता।गोष्ठियों में जहाँ कुछ नया मिले बस उतना ही।
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- · 1दि
- घर मे आज भी दीमकों से जूझती किताबों में जीवन का स्पंदन प्रतीक्षा करता है।अच्छा किया जो मंच छोड़ दिया।भारतेंदुजी,एक रोचक बात।यूनिवर्सिटी स्तर पर ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो रही हैं ,माउंटबेटेन के वाच डॉग्स की तरह वाच पार्टियां भी ,आश्चर्य है कि वार्ताओं में...और देखें
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- · 1दि
- जी दादा सन 1982 में नीरज की अध्यक्षता थी,सुमित्रा कुमारी सिन्हा जी भी थी।लखनऊ में भव्य कविसम्मेलन होता था।सूँड़ फैजबादी संचालन कर रहे थे।बेहूदी फब्तियों के साथ मुझे कविता पाठ केलिए बुलाया मैंने उनकी कलई उतार दी फिर कविताएं पढ़ी।बाद में उन्होंने मंच पर आक...और देखें
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- · 1दि
- वाच डॉग्स बहुत बढ़िया प्रयोग है।
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- · 1दि
2 और जवाब देखें - वास्तविक हालात यही है।
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- · 1दि
- जी आदरणीय।
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- · 1दि
- काबिले गौर
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- · 1दि
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- · 1दि
- बहुत बढ़िया लिखा है
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- · 1दि
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- · 1दि
- सर!जो मेले में मंच से कवि सम्मलेन होते हैं,जहाँ साहित्य की समझ नहीं रखने वाले लोग होते हैं,वह और हास्यास्पद लगता है।इसी अनुभव पर मैंने एक गीतिका लिखी थी,जिसका मुखड़ा पूरा व्योरा समझने में सहयोगी है-...और देखें
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- · 1दि
- अक्षरशः सत्य । आपके लेखकीय साहस का स्वागत्
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- · 1दि
- धन्यवाद दादा।
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- · 1दि
- भाई जी,आपने मंचीय गीतकारों पर सटीक बात कही है। नवगीत को आगे ले जाने के लिए सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखना होगा।
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- · 23 घंटे
- जी आप ठीक कह रहे हैं।
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- · 23 घंटे
- साध लेंगे भूख लेकिन भीख का खाना नहीं,उस विषैली रोशनी केमंच पर जाना नहीं.
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- · 21 घंटे
- अच्छा संकल्प है।
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- · 16 घंटे
- Yash Malviyaji ia par kuchh kahen. Yah chahta hun.
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- · 16 घंटे
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