शुक्रवार, दिसंबर 28, 2018

नवगीत की परंपरा (क्रमश:)
न कोई बिम्ब न कोई चमत्कार,न कोई दूर की कौड़ी लाने का प्रयास ही किया गया|नवगीत की परंपरा को जाने समझे बिना जो लोग नवगीत क्या है पूछने लगते हैं,या जो कहते हैं कि नवगीत को गीत ही मान लिया जाए तो क्या फर्क पडेगा उन चिंतन शील युवा नवगीतकार मित्रों के लिए साझा कर रहा हूँ|गलेबाज मंचीय लोगों के लिए नहीं ये उन्हें कतई अच्छा नहीं लगेगा-

अकाल के बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया
चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया
सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर
छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी
हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर
कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर
कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें
कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें
कई दिनों के बाद।---नागार्जुन


  • राम सेंगर नागार्जुन, नवगीत की परंपरा और पृष्ठभूमि को समृद्ध करने वाले अग्रगामियों में से एक हैं । वे अपनी तरह की औघड़ कहन के उस्ताद कवियों में रहे जिन्होंने फार्मूलाबद्ध काव्यरूपों के मुँह पर तमाचा जड़ते हुए कथ्य- शिल्प और लयात्मकता को लेकर ऐसे-ऐसे अनूठे लोकधर्मी...और देखें
    4
  • Prem Chandra Ghanghoriya बाबा नागार्जुन को प्रणाम भारत राष्ट्र के उन ऋषि-मुनियों को प्रणाम है जिन्होंने इसकी प्रारंभिक संरचना में अपना योगदान दिया होगा! बाबा को नमन पुनः नमन
    1
  • Dinesh Priyaman वही गीतात्मक रचना नवनीत कही जा सकती है जिसमें शिल्प व अन्तर्वस्तु का नयापन हो। यह कौशल गीत धारा की परम्परा को जानने के साथ अपने समय की सम्वेदना को नयेपन के साथ लयात्मक अभिव्यक्ति देने में है। आप मंचीय कविता की गलेबाजी पर जो टिप्पणी कर रहे हैं उससे सहमत...और देखें
    1
  • भूपेन्द्र दीक्षित बहुत बढ़िया कोई जवाब नहीं है
    1
  • Dineshwar Prasad Singh Dinesh बाबा नागार्जुन को नमन, आपको हार्दिक बधाई
    1
  • Bhartendu Mishra शंभुनाथ सिंह जी ने नवगीत अर्धशती" में नागार्जुन जी के गीत शामिल किये थे।
  • रमाकान्त नीलकंठ नागार्जुन की इस प्रसिद्ध कविता को गीत या नवगीत कहना कविता और नवगीत दोनो पक्षों के लिए अन्यायपूर्ण है और दूर की कौड़ी लाना है।
    1
  • Bhartendu Mishra रमाकांत जी ये आपका मत हो सकता है ,लेकिन नवगीत या गज़ल, दोहा आदि कविता की विधाएं हैं।नईकविता और नवगीत लगभग एक साथ हिंदी कविता में प्रचलित हुए ,ये प्रवृत्ति भर है। मुझे इसमें अन्याय जैसी बात समझ मे नहीं आती।शोध और समीक्षा की दृष्टि से विधाओं का विभाजन किया गया है।मूलतः तो सब कविता ही है।

  • नवगीत की परंपरा

    नवगीत आन्दोलन के प्रारंभिक दिनों का नवगीत है|जब त्रिलोचन जी बनारस में रहते थे|शंभुनाथ सिंह जी उनके मित्र थे|और ये चित्र डॉ.नामवर सिंह जी के साथ गंगा तट का है| नवगीत के शिल्प को समझने के लिए युवा मित्रों हेतु साझा कर रहा हूँ-

    आज मैं अकेला हूँ

    आज मैं अकेला हूँ
    अकेले रहा नहीं जाता
    जीवन मिला है यह
    रतन मिला है यह
    धूल में कि फूल में
    मिला है तो मिला है यह
    मोल तोल इसका
    अकेले कहा नहीं जाता|
    सुख आये दुख आये
    दिन आये रात आये
    फूल में कि धूल में
    आये जैसे जब आये
    सुख दुख एक भी
    अकेले सहा नहीं जाता|
    चरण हैं चलता हूँ
    चलता हूँ,चलता हूँ
    फूल में कि धूल में
    चलता मन चलता हूँ
    ओखी धार दिन की
    अकेले बहा नहीं जाता|
    (-धरती )चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग और दाड़ी