रविवार, अक्तूबर 24, 2010

धरती पहला छन्द है


दोहे
1
फिर सरिता के कूलपर/फूली सुन्दर काँस
लहर लहर लिखनेलगी/रेती पर उल्लास।
2
चीटी अक्षत लेचढी/जब पीपल के शीश
ब्रह्मराक्षस सेबना/वह पीपल जगदीश।
3
ढलते ढलते ढलरहा/पश्चिम का दिनमान
अब सूरज सेप्रार्थना/लिखे किरण मुस्कान।
4
गीध कर रहे इनदिनो/रावण वध का स्वाँग
ठगी जा रहीजानकी/संत छानते भाँग।

5
फिर उत्सव मुद्राबनी/फिर खुश हैं महराज
नगर दुल्हन सा सजगया/इस चुनाव के ब्याज।
6
रोहित से कहनेलगे/हरिश्चन्द हो खिन्न
दुख ही भोगाउम्रभर/तू पथ चुन ले भिन्न।
7
हरे भरे थेफूलकर/पीले पडे कनेर
दिन फिरने मेआजकल/लगती कितनी देर।
8
काट बरगदो कीजडे/करते हैं उद्योग
गमलों मे बोनेलगे/बौनेपन को लोग।
9
नचिकेता से खुशहुए/तो बोले यमराज
घर कपडा रोटी नकह/स्वर्ग माँग ले आज।
10
हम हैं यह सौभाग्यहै/समय बडा ही ढीठ
चार चाम कीचाबुकें/एक अश्व की पीठ।
11
दस्तक दे कहनेलगा/सुबह सुबह ईमान
कविता मे जीवित रखो/भाईमेरे प्रान।
12
इतनी हो प्रभु कीकृपा/खाली रहे न जेब
घर कपडा रोटी मिले/भले न हो पाजेब।
13
हरे भरे थेफूलकर/पीले पडे कनेर
दिन फिरने मेआजकल/लगती कितनी देर।
14
धूल नहायी चिडी का/था इतना विश्वास
इक दिन बरसेगा यहाम/मुट्ठी भर आकाश।
15
मुँह फेरे लेटे रहे/पहलेदोनो मौन
पुन: परस्परपूछते/वह था,वह थी कौन?
16
बिना लिखे खत मेमिला/ सहमा हुआ गुलाब
और लिफाफे परलिखा/देना मुझे जवाब।
17
निंबिया बोली आम से/भूल गया अनुबन्ध
मै बौरी जब जब मिली/तेरे तन की गन्ध।
18
जिस निकुंज मेखेलते/ थे रति रस के खेल
वहाँ पडोसी बो गया/चिनगारी की बेल।
19
धरती पहला छन्द है/सुने गुने चुपचाप
खरबूजे की फाँक सा/इसे न बाँटे आप।
20
कल गाडी थी नाव पर/अब गाडी पर नाव
समझ सका है आजतक/कौन समय का दाँव।
(कालाय तस्मै नम: से)