बुधवार, जनवरी 15, 2020


समीक्षा
#रामजियावन की व्यथा कथा
# भारतेंदु मिश्र

अग्रज शैलेन्द्र शर्मा का नवगीत संग्रह रामजीवन बांच रहे हैं’ पिछले दिनों प्रकाशित हुआ है| यह उनका दूसरा संग्रह है पहला नवगीत संग्रह सन्नाटे ढोते गलियारे वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ था और उसके बाद उनकी कई और काव्य पुस्तकें भी आयी हैं| गजलसंग्रह,दोहासंग्रह भी आए हैं वे लगातार समकालीन कविता की राह पर चलते आ रहे हैं|इस गीत संग्रह के गीत भी नई सदी की जो भी विसंगतियां हैं उनको रेखांकित करते हुए चलते हैं इन गीतों का मुहावरा भी नवगीत के बहुत समीप है| ये गीत भी खास तौर से आम आदमी के पक्ष में खड़े होते हैं और राम जीवन एक ऐसा संभवत: दलित पात्र है जिसको लेकर ये गीत संग्रह तैयार हुआ| इस संग्रह के गीत पहले वाले की अपेक्षा अधिक मारक है बाजार से पैदा हुई अनेकानेक विसंगति की अभिव्यक्ति से अभिभूत हैं, और समय की व्यंजना की दृष्टि से सुन्दर बन पड़े हैं|एक गीत की पंक्ति देखें -
 जनसेवक का वाचिक चेहरा /गोल स्वदेशी है|
और-
नहीं कहीं से कर्म गणेशी/ पेट गणेशी है |’ तो इस प्रकार की अभिव्यक्ति सहज रूप में वे सिद्धकवि के रूप में  करते हैं जो दूर तक उभरती है| हम सब जानते हैं कि  हमारे जनसेवकों का पेट कितना बड़ा होता जा रहा है| एक और गीत का इसी क्रम में उल्लेख करना चाहूंगा-
अंतर्मन में कपटी रावण तंत्र जगाता है
और ओढ़ कर गैरिक ज्यादा नाम कमाता है|
धर्म के धंधेबाजों पर इन विसंगतियों के बिम्ब और चित्र शैलेन्द्र जी के यहां बखूबी उभरते हैं|हमारे जीवन  और जो हमारी सामाजिक चेतना है उसको रेखांकित भी करते हैं| प्रधानी को लेकर एक गीत का असर देखें कि राजनीति लोगों के जीवन में कैसे कैसे बदलाव लाती है-  
रमधनिया की जोरू धनिया
जीत गई परधानी में
रमधनिया की पौबारह है
आया ट्विस्ट कहानी में
पलक झपकते कहलाया वह
रमधनिया से रामधनी
घूरे के भी दिन फिरते हैं
देखी सच्ची बात सुनी
लंबरदार चौधरी रहते
अब उसकी अगवानी में |’
तो इस प्रकार के अनेक परिवर्तन जो हमारे अवध की सामाजिक संरचना में हो रहे हैं उनको लेकर शैलेंद्र शर्मा जी की लेखनी लगातार चलती रही है| नई सदी की दुनिया फेसबुक, व्हाटसएप की दुनिया है उसके बारे में उनका एक गीत बहुत सुन्दर लग रहा है-
खुली फेसबुक हुई दोस्ती
शीला शाम मिले
सोलह की शीला थी केवल सत्रह का था श्याम
इंटरनेट पर चैटिंग करना
मन भावन था काम
सच कहते हैं दूर ढोल के
लगते बोल भले|’
प्रगति के नाम पर आगे बढ़ते हुए हम सब देख रहे हैं कि शहर किस तरह से गांवों को खा रहा है|उसकी धरती को कृषियोग्य भूमि को  लगातार निल रहा है, ये शहरी विकास का अजगर सबको निल रहा है- शहरी अजगर निगल रहा है
उपजाऊ धरती
भूमि अधिग्रहण होगा सुन कर
व्याकुल हुए सभी
नक्शा लेकर लेखपाल भी
आये वहां तभी
लगे बताने रकम मिलेगी
और न भरती |’
 तो किस तरह से किसान धरती की धरती का अधिकार भी लालच देकर छीना जा रहा है| ऐसी अनेक सामयिक विसंगतियां हैं, राजनीतिक गठजोड़ है, जातिवाद है, स्त्रियों का रुदन है तो इन सभी विषयों को असल में विषय जो समाज में दिखाई देते हैं उन सब पर शैलेंद्र शर्मा जी की सार्थक लेखनी चली है और कानपुर के गीतकार कवियों में उनका अपना एक स्थान भी निर्मित हुआ है| यह सही है कि वो कुछ बाद में इस कविता की दिशा में आये| डॉ.उपेन्द्र,राम स्वरूप सिन्दूर,वीरेन्द्र आस्तिक ,अवधबिहारी श्रीवास्तव, ब्रिजनाथ श्रीवास्तव, देवेंद्र सफल जैसे और अनेक कानपुर के गीतकारों की परम्परा रही है|इन सबकी कविताई के बीच शैलेन्द्र शर्मा जी ने अपना एक मुकम्मल स्थान बनाया है और उनकी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से भी लगातार पढी सुनी जाती है|वे जनता के दुख दर्द को नवगीत का रूप देते हैं| वे सार्थक ढंग से अपनी लेखनी का उपयोग भी करते हैं अंतत: उन्हें रामजियावन जैसे अवध के श्रमिकों की व्यथा कथा की सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बहुत बधाई| 
‘राम जियावन बांच रहे हैं’ : (नवगीत संग्रह )/ कवि;-शैलेन्द्र शर्मा/प्रकाशक:ज्ञानोदय प्रकाशन,कानपुर/मूल्य:-200/ वर्ष:2019
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