सोमवार, जून 27, 2016


सच से साक्षात्कार कराते गीत(पाठकीय प्रतिक्रिया )
#राकेश कुमार श्रीवास्तव
         
 जब कोई युवा गीतकार किसी वरिष्ठ गीतकार के गीतों को पढ़ता है। तो उसकी स्थिति समंदर के किनारे बैठकर कंकड़ बीनने जैसी होती है। वह अपने कद के नाप तौल में जुट जाता है। कई भरम टूट जाते हैं। रश्मि शील जी द्वारा सम्पादित पुस्तक"अनुभव की सीढ़ी"में जब मैंने भारतेंदु जी के नवगीतों को पढ़ा तो लगा कि गीतकार कहलाने में और होने में कितना फर्क होता है। मंचो ने गीत को आम आदमी से दूर कर दिया है। ऐसे में भारतेंदु जी जैसे वरिष्ठ नवगीतकारों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। युवा कवि जो संभावनाशील हैं वे मंचो की ओर दौड़ रहे हैं या यूँ कहें यथार्थ से दूर हो रहे हैं। गीत इस समय कठिन दौर में है।नए कवि सपाट बयानी में रत हैं ऐसे में भारतेंदु जी के गीत उम्मीद की किरण हैं।और इस किरण को और उजास देने का भागीरथी प्रयास डॉ रश्मी शील शुक्ला ने किया है जिन्होंने भारतेंदु जी के नवगीत रूपी मोतियों को एक सुन्दर हार के रूप में जोड़ कर प्रस्तुत किया है। इस हार की खासियत यह है कि ये कहीं से भी ढीला नहीं है। गीत प्रेमियों के लिए ये अनुपम उपहार है।
            आज जब मंचो के ग्लैमर में लोग प्रायोजित लेखन करने में लगे हैं तब भारतेंदु जी जैसे रचनाकार ही हैं जो हमें यथार्थ का बोध करा रहे हैं। उनके गीतों में कहीं भी बनावटीपन नहीं है। उनके गीत सच का साक्षात्कार कराते हैं। शोषण पर तंज़ देखिये-
      "एकनिष्ठ बगुले का
        सहज लक्ष्य बोध
        एक टांग खड़े खड़े
        मछली का शोध।।"
वर्तमान समय में व्याप्त भय, असुरक्षा , असंतोष, पर कवि ने पूरी ताकत से कलम चलाई है। समाज में व्याप्त विसंगतियों को सामने लेन का काम कलम करती है। कलम अगर अपने दायित्व से मुख मोड़ ले तो लेखन उदेश्य हीन हो जाता है। भारतेंदु जी जैसे गीतकार अपनी जिम्मेदारियां खुद तय करते हैं और उन्हें  प्रण पूर्वक पूरा करने का साहस भी दिखाते हैं ।
         "वय के गलियारे में पैर डगमगाते हैं
          रास्ते अपरिचित हैं किन्तु बढे जाते है।।" कवि अपरिचित और कठिनाई भरे रास्तों पर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है यही कवि का धर्म होता है कि वह हमें नैराश्य से बहार निकाले। हमारी ऊर्जा का हमें अहसास कराये। कवि ने व्यंगात्मक लहज़े में अपनी बात कही है ।सपाट बयानी तो उनके गीतों से कोसों दूर है। यही व्यंजना पाठकों को जोड़े रखती है। उनके गीत भीतर तक मार करने वाले हैं। वे हमें सोचने पर विवश करते हैं। यही कवि की सफलता है। वे कहते हैं-
   "अगस्तयों ने पि लिया है सिंधु का सब जल
     और हर मछली तड़पती प्यास से घायल
     ढल गई कविता किसी बूढ़ी तबायफ सी।।"
उनके द्वारा प्रयोग किये गए प्रतीक सटीक मार करते हैं।
              विश्व् अब बाजार हो गया है। हर चीज़ बिकने को तैयार है। कवि की चिंताए इस बात को लेकर है कि कहीं इस दौड़ भाग में हम अपनी संस्कृति एवं अस्तित्व को न खो बैठें। और उसका ऐसा सोचना निरार्थक भी नहीं है।बड़े देश हमेशा छोटे देशों के प्रति दुराग्रह रखते हैं। उन्हें हम केवल बाजार दिखाई देते हैं। इसका दुष्प्रभाव हमारे देश पर भी पड़ा है।-"नेताओं की एक राय है
                     यह दुनिया बाजार बने।
                    हंसिया सुई हथौड़ा छोडो
                   मानव बम हथियार बने।
      कवि अपने गांवों के भोलेपन को बचाना चाहता है। यद्यपि वह विकास का पक्षधर है परंतु अंधे विकास का विरोधी भी। शहरी संस्कृति लोगो को दूर करती जा रही है। हमारे देश का आधार लोगों का आपसी प्रेम और सौहार्द्र रहा है जो अब टूट रहा है।"यह शहर है
     चीख सुनकर कौन रुकता है
      बहुत पक्के स्वार्थ निर्भर
    लोग अपने घाव खुद ही चाटते।।"
  राजनीती पर बहुत बातें होती हैं कवि ने भी राजनीति पर प्रहार किये हैं। राजनीति में वंशवाद को कवि ने निशाना बनाया है। वंशवाद वर्तमान राजनीति का सबसे कलुषित पक्ष है। इसके अलावा भी कवि ने मर्यादित होकर रणनीति पर करारे प्रहार किये हैं
   "गूंगे बहरे दरवारी हैं अन्धो का दरवार लगा है
   भीष्म द्रोंण छटपटा रहे हैं दुर्योधन का कर्ण सगा है।
ऐसे में समता की भिक्षा मांग रहे कुछ लोग यहाँ"।
       निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है क़ि,"अनुभव की सीढ़ी"पुस्तक में भारतेंदु जी के श्रेष्ठ नवगीतों को संकलित कर डॉ रश्मि जी ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इतने श्रेष्ठ नवगीतों को एक पुस्तक का स्वरुप देकर उन्होंने पाठकों को उपकृत किया है। भारतेंदु जी के बारे में मुझ जैसे छोटे कलमकार के द्वारा इतना ही लिखा जा सकता है कि हमारी पीढ़ी गर्व करेगी कि वे हमारे समय में थे। यह हमारे लिए गौरव की बात है। श्रेष्ठ नवगीतों के संकलन के लिए डॉ रश्मिशील शुक्ल जी को बहुत बधाइयाँ।
राकेश कुमार श्रीवास्तव
युवा गीतकार
सेंवढ़ा जिला दतिया मध्यप्रदेश
मोबाइल 09977527170
पिन 475682