शनिवार, जनवरी 15, 2011

छंद प्रसंग: विहंगम आकलन

छंद प्रसंग: विहंगम आकलन
हिन्दी कविता-2010-विहंगम आकलन
संवेदना की जडे धरती से आसमान तक अपना नेटवर्क लगातार रचती हैं
भारतेन्दु मिश्र
शमशेर ने कहा था-मै वो आइना हूँ जिसमे आप हैं- अर्थात कविता वही होती हैंजिसमे आम आदमी के सरोकार साफ नजर आते है। इस आधार पर यदि हम गत वर्ष यानी 2010 कीकविता का आकलन करते हैं तो हमे कवियो की आम आदमी के प्रति प्रतिबद्धता साफ दिखाईदेती है।कविता कभी न खत्म होने वाली सदानीरा है।मनुष्य की अंतरचेतना की तमाम ध्वनियाँसदैव कविताओ मे प्रतिबिम्बित होती रहती है। कविता साहित्य की मुख्य विधा है कविताके अनेक रूप हैं।और हर समय मे सभी जगह कविता की विविध वर्णी छवियाँ सदैव विद्यमानरही हैं। जहाँ तक पिछले वर्ष मे हिन्दी कविता की स्थित का आकलन करने की बात है तोगत वर्ष मे भी हमारे सामने कविता की अनेक भंगिमाएँ दिखायी देती हैं,और उनमे झलकतीमार्मिक संवेदना के बिम्ब आकर्षित करते हैं। हमारे समय को नवीन भंगिमा से देखतेहुए अनेक कवि लगातार अपनी कविताओ के साथ उपस्थित मिलते हैं। वरिष्ठ कनिष्ठहरप्रकार के कवि अपनी तरह से इस वर्ष भी अपनी कविताओ के साथ इस वर्ष सबसे ज्यादाअंतर्जाल के ब्लागो,नेट पत्रिकाओ आदि मे खूब उभरे हैं। रामदरस मिश्र हो यादेवेन्द्र शर्मा इन्द्र,उदयप्रकाश,बोधिसत्व हो या अन्य कवि जिनमे सुनीताजैन,व्योमेश शुक्ल,बद्रीनारायण,गिरिराज किराडू,रंजना जैसवाल,अम्बरीशश्रीवास्तव,ऋषिवंश,रमेश प्रजापति,हरकीरत हीर,विमलेश त्रिपाठी,वन्दना शुक्ल आदि,सभी नए पुराने कवि नेट पत्रिकाओ पर लगातार अपनी कविताओ के साथ दिखाई देने लगे हैं।
नेट पर कविता की एक नई दुनिया लगातार आकार ले रही है। पूर्णिमा वर्मन कीअनुभूति पत्रिका के अलावा सृजनगाथा,गवाक्ष,अनहद आदि का महत्व लगातार दुनिया भर मे अंतर्जालके पाठको की दृष्टि से बढता जा रहा है। इन्हे लोग पढते भी हैं और टिप्पणियाँ भीकरते हैं। यहाँ मुक्त छन्द के अलावा दोहे हैं,गजले हैं,गीत हैं,नवगीत हैं।नवगीत कीतो पाठशाला चलायी जा रही है।
अब जब अधिकांश प्रकाशको ने कविता पुस्तके छापनी बन्द कर दी हैं,तो भी कविहारा नही है वह अपने सहयोग से ही अपनी कविताएँ प्रकाशित कराने मे लगा है। यह वर्षनेट पर प्रकाशित कविताओ की दृष्टि से क्रांतिकारी प्रगति लेकर आया है। जहाँ तक समकालीनकविताओ की विषयवस्तु की बात है तो उसमे कोई विशेष नयापन नही है किंतु प्रेम दुख- करुणा- राजनीति- बाजार की मार ,मँहगाई आदिके साथ व्यक्तिगत लालसाएँ भी कवियो की कविताओ के विषय के रूप मे सामने आयी हैं।
इसी वर्ष लीलाधर मंडलोई द्वारा सम्पादित कविता का समय शीर्षक काव्यसंकलन मे पच्चीस कवियो की कविताओ का संकलन किया गया है जिनमे अधिकांश कविनये हैं। लेकिन उनकी कविताएँ किसी तरह से कमजोर नही कही जा सकतीं। इस संकलन मेसविता भार्गव,प्रदीप जिलवाने,ज्योति चावला,अरुणा राय,रमेश आजाद,मंजुलिकापाण्डेय,विनोदकुमार सिन्हा,अरुण शीतांश,अच्युतानन्द मिश्र,ब्रजेश कुमार पाण्डेयजैसे नये पुराने कवि एकत्र उपस्थित हैं।
एकल संग्रहो मे रामदरस मिश्र केसंकलन-कभी कभी इन दिनो मे नई संवेदना की अनेक कविताए हैं,इस संकलन मेगीत,गजल,अन्य कविताएँ सब एकत्र है। बसंत हरसिंगार के अलावा कवि ने अपनी पत्नीसरस्वती जी पर कविता लिखी है जिसका शीर्षक है-सरस्वती जी पचहत्तर की हुई।विजेन्द्रका चौदहवा संकलन आँच मे तपा कुन्दन प्रकाशित हुआ है। नन्दकिशोर आचार्य काकविता संग्रह-गाना चाहता पतझड इसी वर्ष आया है। नन्द किशोर आचार्य कीकविताओ मे भाषा का माधुर्य और गीतात्मकता की आभा देखने को मिलती है। इसी क्रम मेविष्णु नागर का संकलन-घर के बाहर घर ,हेमंत शेष का संकलन-तथाकथितप्रेमकविताएँ मे प्रेम के विविध रंग है।,राजेन्द्र नागदेव का कविता संकलन-पत्थरमे बन्द आदमी मे बाजार की त्रासदी की पीडा के स्वर हैं।सुदीप बनर्जी का संकलन-उसेलौट आना चाहिए मे कवि के मृत्यु संघर्ष की त्रासदी के स्वर साफ तौर पर देखे जासकते हैं। कथाकार दूधनाथ सिंह का कविता संग्रह-युवा खुशबू और अन्य कविताएँशीर्षक से प्रकाशित हुआ है। इन कविताओ मे कवि के अनेक काव्य बिम्ब आख्यानक शैली मेउभरे हैं। प्रभात पाण्डे ने हिन्दी मे उमराव जान पर लम्बी कविता लिखी है।इस कविता मे कवि का श्रद्धांजलि वाला स्वर बहुत मार्मिक बन पडा है।
इसके अतिरिक्त गोरखपुर के कविगणेश पाण्डेय के कविता संग्रह जापानी बुखार मे नयी संवेदना की मार्मिकतादेखे-
क्या पहले भी मच्छर के काटने से /मर जाते थे कपिलवस्तु के लोग/क्या पहलेभी धान के सबसे अच्छे खेतों मे /छिपे रहते थे जहरीले मच्छर/जापानी।
शशिशेखर शर्मा का संकलन-हरसिंगार के सपने,युवा कवि प्रेमशंकर शुक्लका संकलन-झील एक नाव है मे कवि पानी और झील की चिंताओ के स्वर है। राधेश्यामतिवारी का संकलन-इतिहास में चिडिया मे भी घर और बाहर की मार्मिक कविताएँहैं। विनोद कुमार के संकलन नीलीआग से गुजरते हुए मे-संडासमे मरे हुए आदमी का चेहरा जैसी अत्यंत मार्मिक कविताएँ हैं।
सन2010 केदार नाथ अग्रवाल,नागार्जुन,शमशेर ,अज्ञेय जैसे कवियो की जन्मशतीका वर्ष भी रहा। अनेक स्तरो पर कविता की व्याख्याए और पुनर्पाठ भी इस वर्ष हुए।इसी समय मे अष्टभुजा शुक्ल जैसे अपनी माटी से जुडे कवियो की भी कविताएँ लगातार आयीहैं। अखबारी रिपोर्टिंग की तर्ज पर तो नमालूम कितनी ही कविताएँ लगातार प्रकाशितहोती रहती हैं। इस बरस कविता के खाते मे भले ही कुछ बहुत बडा काम नहुआ हो तो भीहिन्दी कविता के खाते मे लगातार नई विकसित मार्मिक व्यंजनाएँ तो देखने को मिलती हीहैं। भारतीय ज्ञानपीठ ने अज्ञेय संचयन का प्रकाशन किया है।जिसका सम्पादनव्रि.कवि कन्हैयालाल नन्दन ने किया है। बच्चन जी कविताओ का संचयन अमिताभ बच्चन नेकिया है। इसके साथ ही उल्लेखनीय यह भी रहा कि इसी वर्ष कविवर
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ग्रंथावली का भी प्रकाशन हुआ है। लीलाधर मन्डलोई के दोकविता संकलन प्रकाशित हुए हैं जो क्रमश: -एक बहुत कोमल तान और लिखे मेदुक्ख है। ये छोटी कविताएँ है जो सूक्तियो की शैली मे सीधा प्रभाव करतीहैं। सुनीता जैन के दो कविता संग्रह आये हैं-हरेवा और रसोई की खिडकी सेये दोनो काव्य संकलन कवयित्री की सतत सक्रियता को प्रमाणित करते हैं। किरण अग्रवालका कविता संग्रह-रुकावट के लिए खेद है,रश्मि रेखा के कविता संग्रह सीढियोका दुख मे नारी विमर्श की कुछ नई कविताएँ देखने को मिलती हैं। स्त्री के घरसंसर की नई लय को कवयित्री पकड कर चलती है। चित्रकार वन्दना देवेन्द्र के कवितासंग्रह- आत्महत्या के पर्याय मे भी स्त्री दुख के अनेक बिम्ब देखने कोमिलते हैं।
यह कविता का एक पक्ष है कविता के छान्दसिक पक्ष की बात भी समग्र कविता केआइने मे अपनी स्पष्ट छवि के साथ लगातार पर्तिबिम्बित होती रही है गीत,नवगीत,दोहे,गजल आदि रचने वाले कवि भी कविता की नई भूमिका रचते हैं।
वरिष्ठ गीतकार देवेन्द्र शर्मा इन्द्र का गजल संग्रह भूला नही हूँ मैंइसवर्ष आया है एक अशार देखे-
रात भर जागते रहे हैं हम
धुन्ध मे गुमशुदा सहर के लिए।
अस्सी की उम्र के करीब पहुचने वाले इन्द्र जी ने नवगीत,दोहे और गजल केअलावा अनेक विधाओ मे लगातार कविता की है। सम्भवत; यह कवि का पच्चीसवाँ कवितासंग्रह है। वो आज भी किसी खूबसूरत सुबह की प्रतीक्षा मे हैं। कवि का स्वभाव ऐसा हीहोता है। एक और अशार देखे अभी और कहने की तमन्ना कवि मे बाकी है-
अभी तो छेडा है साज मैने/अभी जुबाँ तक हिली नही है
जो सबके दिल को पसन्द आये वो बात मैने कही नही है।
छन्द प्रसंग की बात को और आगेबढाते हुए आगे चलते हैं इसीवर्ष गीतकार वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा सम्पादित समकालीन गीत संग्रह-धार पर हम -2का प्रकाशन हुआ है।इस गीत संकलन में नए पुराने सोलह कवियो के गीत संकलित हैं जिनकेनाम क्रमश:-कुमार रवीन्द्र,मधुसूदन साहा,अश्वघोष,राम सेंगर,नचिकेता,विष्णुविराट,महेश अनघ, महेन्द्र नेह, योगेन्द्र दत्त शर्मा,ओमप्रकाश सिंह,राजेन्द्रगौतम,विनोद श्रीवास्तव,जयचक्रवर्ती,भारतेन्दु मिश्र,यशोधरा राठौर और मनोज जैन मधुरके नाम शामिल हैं। कविता के खाते मे इस गीत संकलन का अच्छा प्रभाव कहा जा सकता है।विशेष उल्लेखनीय यह भी रहा कि इस पुस्तक के बहाने क्रमश: कानपुर और भोपाल मे गीतनवगीत विमर्श पर केन्द्रित गैर सरकारी आयोजनो के माध्यम से संगोष्ठियाँ भी आयोजितकी गयीं|
इसे कविता के लोकस्वर का प्रकटीकरण भी कहा जा सकता है। वरिष्ठ नवगीतकारकुमार रवीन्द्र का एक गीत देखें-
कहो सुगना/हाल क्या है अब तुम्हारा/कटे जंगल/नदी रुक रुक कर बही/सडक आयीहै तुम्हारे गाँव तक/यह है सही/गया है वनदेवता का घर सँवारा/द्वार पर/रथ खडा सपनोसे लदा/मत कहो वह साथ लाया आपदा/बावरी हो/खोजती तुम शुक्र तारा/शहर तक तुम जासकोगी जब कभी/वहीं पर तो /हाट हैं ऊँचे सभी/बेचना तुम /वहाँ अपना मन कुँआरा।
नई संवेदना को न्योता देते हुए वरिष्ठ गीतकार नचिकेता कहते है-

आना जैसे /लहू धमनियो मे आता है/और नयन मे खुशियो का जल भर जाता है/बनकेमीठी नजर/थके तन को सुहराना/आना /मेरे घर हर दिन /उत्सव सा आना।
इसी क्रम मे युवा कवयित्री यशोधरा राठौर के उलझे सवाल गीत का अंश देखें-
खडी खडी /मै सोच रही हूँ/झोल समय का /नोच रही हूँ/काला कुछ /दिख रहा दालमें /फँसी मकडियाँ रही/ जाल में/मै उलझी उलझे सवाल में।
एक और युवा गीतकार मनोज जैन मधुर का गृहरति व्यंजना वाला स्वर देखे-

गहन उदासी अम्मा ओढे/शायद ही अब चुप्पी तोडे/चिडिया सी उड जाना चाहे/तनपिंजरे के तार तोडकर/चले गये बाबू जी /घर मे /दुनिया भर का /दर्द छोडकर।
इसप्रकार धार पर हम -2 सचमुच एक गीतो का एक अच्छा सकलन कहा जा सकता है।
कविता सन 2010 के खाते मे ऐसेसमवेत संकलनो का ऐतिहासिक महत्व है। इसके साथ ही इस वर्ष बैसवाडी भाषा के गीतो कासंग्रह आया है जिसके कवि हैं चन्द्र प्रकाश पाण्डेय।पुस्तक का शीर्षक बैसवाडीके नये गीत है। ये गीत जायसी तुलसी वाली भाषा मे कवि ने रचे हैं।यही कवि कीमातृभाषा है। घर मे काम करने वाली नौकरानी रामकली का चित्र देखें-

कामे काजे रामकली/अटके चारे रामकली/आँगन और/दुआरु बट्वारै/लरिका चकियाचूल्हु सँभारै/ख्यात निरावै रामकली।
इस वर्ष भी गीतो के अनेक संकलन आये हैं जिनमे- श्रीकृष्ण शर्मा का
एक अक्षर मौन,वरिष्ठ कवि अनुराग गौतम के दो गीत संकलन क्रमश;-सोनजुहीकी गन्ध और आँगन मे सोनपरी प्रकाशित हुए हैं। अन्य उल्लेखनीय गीतसंकलनो मे क्रमश;- यतीन्द्रनाथ राही का-अँजुरी भर हरसिंगार ,मधुसूदन साहाका-
सपने शैवाल के,नेहा वैद का चाँद अगर तुम रोटी होते,अजय पाठक का
गीत मेरे निरगुनिया और देवेन्द्र सफल का-लेख लिखे माटी ने आदि काप्रकाशन इसी वर्ष हुआ है। कहा जा सकता है कि हिन्दी कविता मे गीत नवगीत की आँच अभीमन्द नही पडी है।ये सब कवि छन्दोबद्ध कविता के अनुयायी है इस लिए इनके पास अनुभूतिकी गहनता तो है किंतु विचार की स्पष्टता कुछ ही गीतकारो के गीतो मे मिलती है।
आगे बढकर देखते है तो इसी वर्ष वरिष्ठ गजलकार जहीर कुरेशी की कविताई कोरेखांकित करते हुए उनपर अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हुआ हैजिसका शीर्षक जहीर कुरेशी महत्व और मूल्यांकन। हिन्दी गजलऔर नवगीत की दृष्टि से जहीर कुरेशी एक महत्वपूर्ण नाम है। युवा कवि विनय मिश्र नेयह काम बहुत सुन्दर ढंग से किया है। जहीर साहब की एक गजल के कुछ अशार देखें

नवयुवक दूध के उफान मिले/उनकी बातों मे आसमान मिले।
हँसते चेहरो को खोदकर देखा/लोग दुख दर्द की खदान मिले।
लोग कुत्तो से बेखबर निकले/लोग मित्रो से सावधान मिले।
गजलो के क्षेत्र मे कुछ अन्य नाम इस प्रकार है-किशन स्वरूप का गजल संग्रह-आहट,मेयारसनेही का संग्रह-खयाल के फूल और सखावत शमीम का संग्रह-खाब की रहगुजरआदि इस साल के उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं।
गीत और गजल के साथ ही हिन्दीकविता मे पिछले दो दशको से दोहो की खूब चर्चा होती रही है। लगातार बीस वर्षो सेदोहा कहते चले आ रहे पाल भसीन के सद्य; प्रकाशित काव्य संकलन मे कवि के गीतो केसाथ ही उनके एक सौ पन्द्रह दोहे संग्रहीत हैं। कहना न होगा कि पाल भसीन हिन्दी मेदोहा आन्दोलन के उन्नायक रहे हैं। संकलन का शीर्षक है-खुशबू की सौगातसंग्रह के दो दोहे देखे-

अब न कहूँ तो कब कहूँ/सहूम कहाम तक और
पीडा के इस घाट का/मै ही क्यो सिरमौर?
अपनापन अब बोझ है/रहा न मन का चाव
नही बचेगी डूबती-सम्बन्धो की नाव।
गीतकार देवेन्द्र सफल के एक गीतका अंश देखे कि किस प्रकार छन्दोबद्ध कवि लगातार अपने लोक को और जीवन के सरोकारोको संवेदना के शिल्प मे बाँधता चला आ रहा है-

सुना गाँव मे मरा भूख से /तडप-तडप महिपाल/अच्छा हुआ शहर तुम आये भैया मोतीलाल/सिकुड गये हैं खेत /एक बीघे के ग्यारह हिस्से/आये दिन लाठी चलती है/सुने सभीके किस्से/नमक न सहज/मयस्सर/अब तो दुर्लभ लगती दाल।
अंतत:इस वर्ष भी कविता के खातेमे लगातार नयी संवेदना की सघन व्यंजना मे वृद्धि हुई है। इस कठिन समय कीअभिव्यक्ति समकालीन कवियो ने लगातार की है।सन 2010 मे मराठी के बडे कवि नारायणगंगाराम सुर्वे का निधन हो गया अपने कठिन समय को जीते हुए नारायण सुर्वे की कविताका नामदेव ढसाल द्वारा किया हिन्दी अनुवाद देखें-कविता का शीर्षक है-मुश्किल होताजा रहा है

हर रोज खुद को धीरज देते जीना मुश्किल होता जारहा है/कितना रोके खुद हीखुद को मुश्किल होता जारहा है/फूट-फूटकर रोने वाले मन को,थपकियाँ दे देकर सुलाताहूँ/भूसी भरकर बनाए हुए पशु को देखकर,रुकना मुश्किल है/समझौते मे ही जीनाहोगा,जीता हूँ,पर रोज,मुश्किल होता जा रहा/अपना अलग से अस्तित्व होते हुए भी,उसेनकारना,मुश्किल होता जा रहा/समझ पाता हूँ,समझाता हूँ,बावजूद समझाने के,नही समझपाता हूँ/कोठरी मे जलती दियासलाई नही गिरेगी,इसकी गारंटी देना,मुश्किल होता जा रहाहै।
हमारे कवि लगातार इस मुश्किल समय मे अपनी कविताओ के उजाले से ही आगे बढते रहेहै। आशा है यह क्रम सतत यूँ ही जारी रहेगा।