अशोक कुमार शर्मा विचारणीय !
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शुक्रवार, जुलाई 31, 2020
गुरुवार, जुलाई 09, 2020
😢कुलीन कवि अब नहीं गाते
भारतेंदु मिश्र
💐💐💐💐💐💐💐💐😊☺️😢😊💐💐👍👌
हिन्दी के कुलीन कवियों और कुलीनताबोध वाले संपादकों के लिए जिन्हें छन्दोबद्ध कविता पिछड़ी हुई,लोक भाषा की कविता जड़ और ठहरी हुई लगती है|जिन्होंने लोकभाषा को निष्ठापूर्वक बड़ी जतन से बोली में तब्दील कर दिया और छंदोबद्ध कविता लिखने वाले अकुलीन कवियों के लिए कुछ पत्र पत्रिकाओं में नो इंट्री का बोर्ड लगा रखा है|हिन्दी कविता की सत्ता पर बने रहने के लिए शायद ये अपरिहार्य हो --
#कुलीन कवि अब नहीं गाते
वे गहरे पैठकर गढ़ते हैं
खबरों का वाग्जाल
भद्रभाषा में भद्रलोक के लिए
कश खींचकर समस्याओं पर
उछालते है गंभीरतम सवाल पिछड़ेपन पर
विवादों और अनुवादों में लिप्त रहे
सपने में भी
हंसिया कभी पकड़ा नहीं
हथौड़ा कभी उठाया नहीं
समुद्र से पहाड़ तक
लालटेन लेकर
अडिग भाव से व्यस्त हैं
दो पैग के अभ्यस्त हैं
फिसलन भरी हवाई चर्चा में
युयुत्सु की भांति डटे हैं
पुराने खोखले बांसों में
खोजते फिरते हैं
सुदूर चर्च की घण्टियों के सुर
इसलिए समूह के झुरमुट से सटे हैं
और पथरा गए हैं पठार से
टेसू वन के करुण गीत
इन्हें नहीं लुभाते
इकतारे पर बजती
किसान मजदूर की अनगढ़ छंद लय
धुनिया के धनुष की खोई हुई धुन
जलते हुए बरगद के बिम्ब
गेरू के छापे
चीड़ों पर बिखरी चांदनी
और नदी के गीत
इन्हें नहीं सुहाते
भद्र भाषा में इनका अनुवाद संभव नही हैं
इसलिए कुलीन कवि अब नहीं गाते।
खबरों का वाग्जाल
भद्रभाषा में भद्रलोक के लिए
कश खींचकर समस्याओं पर
उछालते है गंभीरतम सवाल पिछड़ेपन पर
विवादों और अनुवादों में लिप्त रहे
सपने में भी
हंसिया कभी पकड़ा नहीं
हथौड़ा कभी उठाया नहीं
समुद्र से पहाड़ तक
लालटेन लेकर
अडिग भाव से व्यस्त हैं
दो पैग के अभ्यस्त हैं
फिसलन भरी हवाई चर्चा में
युयुत्सु की भांति डटे हैं
पुराने खोखले बांसों में
खोजते फिरते हैं
सुदूर चर्च की घण्टियों के सुर
इसलिए समूह के झुरमुट से सटे हैं
और पथरा गए हैं पठार से
टेसू वन के करुण गीत
इन्हें नहीं लुभाते
इकतारे पर बजती
किसान मजदूर की अनगढ़ छंद लय
धुनिया के धनुष की खोई हुई धुन
जलते हुए बरगद के बिम्ब
गेरू के छापे
चीड़ों पर बिखरी चांदनी
और नदी के गीत
इन्हें नहीं सुहाते
भद्र भाषा में इनका अनुवाद संभव नही हैं
इसलिए कुलीन कवि अब नहीं गाते।
@भारतेंदु मिश्र (#कोरोना काल की कविताएं )
- Chandradev Yadav हाँ, गाने से परहेज करते हैं।
- Ganga Pd Sharma सर कह कर शर्मिंदा न करें आदरेय!आपके सर संबोधन से इस रंक का सर नीचा हो जाता है।
- Javed Usmani बेहतरीन
- Shiv Charan Chauhan बढ़िया
- Shahanshah Alam बढ़िया।
- विनय विक्रम सिंह बढ़िया चाबुक चलाया 🌸🙏
- Pankaj Parimal ऐसी ही स्थिति की मेरी एक नई कविता है--लड़कियों ने नहीं गाए गीत। कुलीन लोग जरूरत पड़ने पर गाना बजाना भी ठेके पर करवाते हैं। खुद गाना पिछड़ापन हैं।
- केदार नाथ शब्द मसीहा चिंतनीय
- Ramesh Gautam सटीक विश्लेषण
- देवेन्द्र पाठक महरूम चुप्पियां ओढ़कर षड्यंत्र करते हैं, टूटकर लय से न जाने कौन सी कविताई करते हैं;
- Bhartendu Mishra देवेन्द्र पाठक महरूम जी अपनी टोली को जिंदा रखने के लिए।
- Yogendra Datt Sharma आड़े समय में सारी कुलीनता धरी रह जाती है। इन कुलीनों का दौर भी अब विदा हो रहा है। निश्चिन्त रहिये।
- Bhartendu Mishra Yogendra Datt Sharma जी आपकी बात सही है।
- Subhash Chander वाह
- Ranjit Patel लय साधते हुए कुछ कवि बूढ़े हो जाते हैं वही कुछ लोग दिन भर में पांच गीत लिख लेते हैं। जीवन के हजारों रंग हैं किन्तु शब्दों को बलात ठूँसकर प्रतिरोध में लिखना बड़े कवि की पहचान बनती जा रही हैं। सुंदर मीमांसा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय!
- Ranjit Patel Bhartendu Mishra जी आपसे मैं सहमत हूं, मैं चिंतित हूँ एकांकी विषय पर जो रोज देखने को मिल रहा है।
- Asha Pandey Ojha Asha बहुत खूब सचमुच कमाल
- Prabhakar Tripathi बहुत सुंदर, वाह! वाह!!
- Brahma Dev Sharma अच्छी कविता । विचारपूर्ण
- Dhruv Gupt बहुत सही
- डॉ. हीरालाल प्रजापति सचमुच जिसे देखो तुकांतिकीय कविताओं या छंद या बहर में लिखने वालों को लकीर का फ़कीर कह रहा है जबकि इन रचनाओं का वास्तविक और पूर्णतः नियमबद्ध फ्रेम वर्क कितना दुरूह है यह एक रचनाकार ही जानता है ।
www.kavitavishv.com - राम सेंगर अपनी एक लंबी प्रगीतात्मक कविता में हमने तो बखिया उधेड़ कर रख दी है इनकी । उस चुनौतीपूर्ण कविता में क्या नहीं कहा हमने , लेकिन , अब जो आपके सुर में सुर मिलाकर गाल बजा रहे हैं , इनमें से एक भी मेरी उस कविता के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ । कुलीनों और शालीनों की कमी नवगीत में भी नहीं है । ज़माने बीत गये , नयी कविता के विरुद्ध प्रतिरोधी-स्वर और संकल्प लेकर नवगीत के कितने पक्षकार हैं जो खुलकर आगे आये ।
- Aruna Awasthi बिल्कुल सच बात है आदरणीय
समयानुकूल रचना - Manjul Mishra Manzar बहुत सुंदर
लाजवाब - रमाकान्त नीलकंठ बहुत सटीक टिप्पणी और सार्थक, बेधक और सुगठित कविता।
- Bhartendu Mishra रमाकान्त नीलकंठ धन्यवाद भाई।
- Buddhi Nath Mishra लाजवाब भारतेन्दु भाई। क्या भिंगो कर जूता मारा है।
- Buddhi Nath Mishra Bhartendu Mishra नहीं तो। हमारी अतिशालीनता ही हमें खुल कर बोलने नहीं देती। हम कायदे से अपना हक भी कहाँ जता पाते हैं।
- Somdutt Sharma बहुत सुंदर है, बधाई भारतेंदु जी ।
- Intekhab Lodi कुलीनों के अंदाज़ में कुलीनों को ही गरिया रहे हैं आप....😊😊
- Intekhab Lodi क्षमा मान्यवर,
लेकिन ये शब्द भी व्यंग्य का ही अंग हो सकता है, प्रयोग करने वाले पर निर्भर है...
ख़ैर, मेरा मंतव्य यह है कि...और देखें
- Shiv Kumar Archan करारी चोट करती कविता।पर वो नहीं सुधरेंगे।
- Bhartendu Mishra Shiv Kumar Archan जी कोशिश करते रहना चाहिए।
- Prabhat Kumar Tyagi प्रश्न यह है कि क्या आज के कवि कुलीन कवियों से ज्यादा ईमानदार हैं।जो हंसिया हथौड़ा चलाते हैं वो कविता नहीं पढ़ते।जो पढ़ते हैं या लिखते हैं उन्होंने भी हंसिया या हथौड़ा नहीं चलाया।ऐसे में इस लेखन को कौन पढता है।यह किसके लिए लिखा जा रहा है। मित्र भेंड़ों को छोड़ कर पाठक कहाँ है।लुप्त पाठक की तलाश करें कुलीन और अकुलीन दोनों तरह के कवि।
- Bhartendu Mishra Prabhat Kumar Tyagi जी ऊपर की टिप्पणी पढ़े तो आपको जवाब मिल जाएगा।
- Prabhat Kumar Tyagi Bhartendu Mishra यह सिर्फ कुछ विचार थे जो आपकी कविता पढ़ कर दिमाग में आये।ये एक brainstorming जैसी बात थी जो सीधी सीधी आपसे सम्बद्ध नहीं थी।
- Chintamani Pathak बहुत सुन्दर
- Katyayn Ravindra बहुत सुंदर कविता। कुलीन कविताई का खेल टूट रहा है।
- Madhu Shukla बुद्धिजीवियों की कथित कविता पर बहुत करारा और सटीक व्यंग्य ।
वाह! - Atul Kumar सही फरमाया, सुंदर
- Krishan Bakshi भाई भारतेंदु जी आज पहली बार आपको इस मुद्रा में देख,पढ़कर दिल गदगद हो गया।ये कुलीन इसी भाषा के योग्य हैं अद्भुत बेमिसाल ।
- Bhartendu Mishra Krishan Bakshi जी आभार आदरणीय।
- Vashistha Anoop बहुत अच्छी और सारगर्भित कविता।
- Bhartendu Mishra Vashistha Anoop जी भाई धन्यवाद।
- Avadhesh Naman वाह , सुंदर सृजन..
- Shashikant Geete वाह बहुत खूब 😊
- Ram Kumar Krishak सही कहा आपने , कुलीन कवियों की यह भी एक पहचान है । कुलीनतावाद पर इस धारदार व्यंग्य कविता के लिए हार्दिक बधाई !
- Bhartendu Mishra Ram Kumar Krishak जी आभार आदरणीय।
- Mukhtar Ahmed Behtreen
- विनोद 'निर्भय' बहुत बढिया
- Harnam Singh Verma सटीक और निशाने पर लगी कविता
- Bhartendu Mishra Harnam Singh Verma जी आभार आदरणीय।
- Sharad Alok सुन्दर, बधाई।
- Ramsanehilal Sharma बहुत प्रभावी बन्धु ।बिखण्डनवाद , उत्तर आधुनिकतावाद और मार्क्सवाद की धुंध में लिपटा बे-चारा कुलीन कवि अब लय साधे या बिखण्डन ।बड़ी दुविधा है मिश्र जी ।काहे की लय फ़य फ्यूचर तो ससुर बिखण्डनवाद में ही है ।विश्वकवि बनने का दिवास्वप्न साफ साफ दिखता है
- Bhartendu Mishra Ramsanehilal Sharma जी आदरणीय नमन।
- आनन्द मणि त्रिपाठी राही Super pranam
- आनन्द मणि त्रिपाठी राही Bhartendu Mishra good thought right
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- · 16 मिनट
- Abhiranjan Kumar भारतेंदु भाई, अब इन कथित कुलीन कवियों को कोई नहीं पढ़ता। खुद ही लिखते हैं, खुद ही पढ़ते हैं और गिरोह में एक दूसरे को पीर और मुल्ला कहते हैं। आम पाठकों में इनका खेल खत्म है।
- Rabindra Nath Choubey बहुत अच्छा
- DrAtul Chaturvedi वाह जी
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