रविवार, फ़रवरी 21, 2016

समीक्षा:

बिहार की गीत चेतना का दस्तावेज
#भारतेन्दु मिश्र
बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहां अनेक सामाजिक राजनीतिक आन्दोलनो के साथ ही साहित्यिक विधाओ और साहित्यिक आन्दोलनो को भी बल मिला।अनेक विश्वविख्यात लेखक और कवियो की भूमि बिहार है।भाई रणजीत पटेल द्वारा संपादित यह पुस्तक समकालीन हिन्दी गीत परंपरा को रेखांकित करने की दिशा मे बेहतरीन प्रयास है।
”गीत विहंग विहार’ हिन्दी गीतो का केवल एक नया संकलन ही नही है।यह हिन्दी गीत के विकास मे बिहार का योगदान प्रदर्शित करने जैसा कार्य भी नही है।इसका लक्ष्य है गीत के पक्ष मे वातावरण बनाना।गीत का पर्यावरण कई कारणो से दूषित हुआ है पर इतना भी दूषित नही हुआ है कि उसे हाशिए पर धकेल दिया जाये।“-(पृ.19- गीत विहंग विहार) सही तर्क है यह रेवतीरमण जी का इस नजरिये से हिन्दी साहित्य की गीत कविता का मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।
समकालीन समवेत संकलनो की परंपरा मे ‘गीत विहंग विहार’ एक सार्थक प्रयास है।भाई रणजीत पटेल ने गीत नवगीत की धरती मुजफ्फरपुर की अपनी गरिमा को आगे बढाने का सराहनीय कार्य किया है।भाई पटेल जी से गत लखनऊ नवगीत महोत्सव-2015 मे भेंट हुई तभी उन्होने मुझे इस पुस्तक की प्रति भेट की थी। पटेल जी का यह कार्य कई दृष्टियो से बेहद आश्वस्ति की सूचना देने वाला है।इस ग्रंथ मे संपादक पटेल जी ने पैंतीस गीत नवगीत के नए पुराने कवियो का परिचयात्मक विवरण दिया है और उनके पांच पांच गीतो को भी संकलित किया है।खासकर रेवतीरमण जी की भूमिका के रूप मे गीत परंपरा पर की गयी टिप्पणी बेहद पठनीय और सारगर्भित है।बिहार की धरती से गीत नवगीत के जो स्वर उठे और उनका किस तरह से पर्यवसान हुआ,यह तथ्य भी जानकारी के लिए इस पुस्तक को पढना चाहिए।
पुस्तक मे जिन पैतीस गीतकारो को समेकित किया गया है उनमें क्र्मश:-केदारनाथ मिश्र प्रभात,रामधारी सिंह दिनकर,गोपाल सिंह नेपाली,आरसी प्रसाद सिंह,रामगोपाल शर्मा रुद्र,आचार्य जानकीवल्लभ शस्त्री,हंस कुमार तिवारी,उमाकांत वर्मा,विन्ध्यवासिनी दत्त त्रिपाठी,रामचन्द्र भूषन,रामनरेश पाठक,राजेन्द्र प्रसाद सिंह,श्यामनन्दन किशोर,सत्यनारायन,गोपीवल्लभ सहाय,हरिहर प्रसाद चौधरी नूतन,अमरेन्द्र कुमार पुतीन,दिनेश भ्रमर,महेन्द्र मधुकर,रिपुसूदन श्रीवास्तव,मृत्युंजय मिश्र करुणेश,ज्ञानशंकर शर्मा,मार्कण्डेय प्रवासी,शांति सुमन,द्वारिका राय सुबोध,नन्दकिशोर नन्दन,नचिकेता,हृदयेश्वर,बुद्धिनाथ मिश्र,उदयशंकर सिंह उदय,रवीन्द्र उपाध्याय,संजय पंकज,यशोधरा राठौर,विश्वनाथ,संजय कुमार शांडिल्य के नाम शामिल हैं।
निश्चित रूप से एक साथ इतने गीत कवियो की बहुआयामी रचनाशीलता की बानगी इस पुस्तक द्वारा प्रस्तुत की गयी है जो बिहार की गीतवाहिनी परंपरा का एक श्रेष्ठ दस्तावेज है।सभी कवियो का साहित्यिक परिचय और पांच पांच गीत संपादक द्वारा चुनकर एकत्र किये गये हैं।भाई रणजीत पटेल का यह श्रमसाध्य कार्य सचमुच सराहनीय प्रयास है।अपनी गीत परंपरा को नये पुराने गीतकारो को जिस प्रकार से संपादक ने एकत्र रेखांकित करने का प्रयास किया है वह छीजती कविता को संरक्षित करने वाला कार्य है। इस सन्दर्भ पुस्तक मे चयनित गीतो का कलेवर कितना आकर्षक और सारगर्भित है यह कुछ निम्न पंक्तियो से पढकर समझा जा सकता है--
 +घोर अन्धकार हो/चल रही बयार हो/आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नही/यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।(नेपाली)
+आयी है कमरे मे धूल भरी शाम/लाल लाल सूरज को आखिरी सलाम।(आरसी प्रसाद सिंह)
+गीतो मे ही फूट रहा हूं मै/गीतो मे ही आगे भी खिलू खुलूं।(रामगोपाल शर्मा रुद्र)
+किसने बांसुरी बजाई/जनम जनम की पहचानी/वह तान कहां से आयी।(आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री)
+चिप्पियां लगी हवा/चस्पां होते खेत/कहां हैं/हम फिसले जा रहे/धूप की ढलान पर।(रामचन्द्र चन्द्रभूषण)
+गांव गांव बुझ गये अलाव/सर्द तेज चल रही हवा/दूर कहीं पर्वत पर बर्फ पद रही/गलियो की रंगीनी जर्द कर रही।(राम नरेश पाठक)
+सुबह की हवा/खुनक से भरी/बिछलने लगी/समय की/रुकी नदी पर तरी।(राजेन्द्र प्रसाद सिंह)
+सभाध्यक्ष हंस रहा /सभासद कोरस गाते हैं/जय जयकारो का अनहद है /जलते जंगल में।(सत्यनारायण)
+गीत दो लिखे मैने/जन्म के मरण के/एक तुम न सुन सकीं/एक मै न गा सका।(गोपी वल्लभ सहाय)
+थाली उतनी की उतनी ही/छोटी हो गयी रोटी/कहती बूढी दादी अपने गांव की।(शांति सुमन)
+यह आजादी/खेल तमाशा है/खाली दीवारो पर चमके/दगाबाज नारे/बदले क्यो तारीख/बदलती हर दिन सरकारें।(नचिकेता)
+लहरो को छौंक गये/पिछले सब गीत वर्ष/एक बून्द रुनके /तो सात पहर गाये/एक बून्द बांसुरी बजाये।(हृदयेश्वर)
+कोसी गाती कमला गाती है/काली गाती है/नदियो के संग धरती की /हरियाली गाती है।(बुद्धिनाथ मिश्र)
+चान्दनी पर लिखो चर्चा मे रहोगे/घाम पर जो लिख रहा-गुमनाम है।(रवीन्द्र उपाध्याय)
+सात रंग से रची अल्पना/सजी कल्पना प्यार पर/हल्दी लगी हथेली अम्मा/छाप गयी है द्वार पर।(संजय पंकज)
+मै खडी हूं/उस गली के मोड पर/जिस गली मे /रंग के चेहरे उडे/चोट से नाखून पांवो के मुडे।(यशोधरा राठौर)
+कहीं नही दस्तक है/नही कहीं चिल्लाना/बौराये अपने मे /चल रहा जमाना।(विश्वनाथ)
अंतत:भाई रणजीत पटेल को हार्दिक बधाई।  इस प्रकार के सन्दर्भ ग्रंथ अन्य प्रदेशो से भी आने चाहिए।

शीर्षक:गीत विहंग विहार
संपादक:रणजीत पटेल
मूल्य: रु-350/
प्रकाशन:2014

प्रकाशक:अभिधा प्रकाशन,गंगा विहार ,दिल्ली-110094