टिप्पणी
भाई जयकृष्ण राय तुषार का गीत
संग्रह सदी को सुन रहा हूं मैं को
देखने का मौका मिला।सचमुच जयकृष्ण
राय तुषार यश मालवीय और सुधांशु उपाध्याय
की परंपरा में इलाहाबाद की गीत नवगीत यात्रा का नया स्टेशन है। जहां थोडी देर रुक
कर गीत का आनन्द लिया जा सकता है।यह तुषार का पहला नवगीत संग्रह है।वे गजलें भी
कहते हैं और अच्छी कहते हैं।बस आशंका है कि कहीं वो कुंअर बेचैन की तरह मंच के
प्रपंच में डूबकर विलुप्त न हो जाएं। खुदा उन्हे मंच की नजर से बचाए रखे।जैसे वो
अपने पिता को याद करते हुए कहते हैं-
पिता/घर की खिडकियों /दालान में
रहना/यज्ञ की आहुति /कथा के पान में रहना।
-तो कथा के पान में रहने का मर्म
इलाहाबाद की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में रचा बसा कोई गीतकार ही जानता है।इसी प्रकार
एक और निराला को समर्पित गीत भी बहुत सुन्दर बन पडा है।कवि सदानीरा से प्रार्थना
करता है और निराला के सुनहरे गीत गाने की बात करता है-
आज भी /वह तोडती पत्थर/पसीने में
नहाए/सर्वहारा /केलिए अब /कौन ऐसा गीत गाए/एक फक्कड /कवि हुआ था/ पीढियों को तुम
बताना।
तुषार भाई के ये गीत नवगीत की
परंपरा में ही अपना स्थान बनाते हुए आगे बढते हैं।यद्यपि एक अट्पटापन शिल्प के
स्तर पर कहीं कहीं नजर आता है।यह अटपटापन उर्दू और हिन्दी छन्दों के एकसाथ प्रयोग
के कारण भी सहज रूप मे आ सकता है।बहरहाल तुषार के पास समकालीन जनवादी
भाषा,कथ्य,सामयिक मुहावरे आदि का अभाव नही है।निसन्देह वरिष्ठ नवगीतकार चाहें तो
तुषार के रूप में नवगीत की नई संभावनाएं अवश्य देख सकते हैं।तुषार की रचनाशीलता से
एक सार्थक उम्मीद तो बन ही रही है |
शीर्षक:सदी
को सुन रहा हूं मैं /
कवि:जयकृष्ण
राय तुषार /
प्रकाशक:साहित्य
भण्डार,इलाहाबाद
/वर्ष:2014/मूल्य:रु.50/
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बहुत बहुत शुक्रिया सर |
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