शुक्रवार, अप्रैल 11, 2014

मित्रो के लिए दो गीत

1.सूरज हूं मैं
(मजदूर दिवस पर )
जब मै थककर बुझ जाता हूं
तब घर का चूल्हा जलता है
सूरज हूं मैं अन्धियारे से
मेरा पेट नही पलता है।

छाए हैं नफरत के बादल
फिर भी मैं चलता जाता हूं
धूमकेतु जब मुझे घेरते
तब हिम्मत से टकराता हूं
छतरी की छया मे सुख से
कुछ लोगों का दिन ढलता है।


मुझे पता है इस धरती पर
कोई मेरा मित्र नही है
कौन सुने कबिरा की भाषा
किसका मन अपवित्र नही है
सच्चाई की इस गर्मी में
मोम सरीखा मन गलता है।

बडा कठिन है इस बस्ती में
सच कहना सच को सह पाना
लोगों ने सीखा है केवल
शक्ल देखकर बात बनाना
जब सब थम जाता है तो भी
कुछ मेरे भीतर चलता है।

2.गीत होंगे

हम न होंगे गीत होंगे
क्योकि ये हमसे बडे हैं
ये समय की सीढियों पर
रत्न मणियों से जडे हैं।


ये नदी हैं ये हिमालय
ये समन्दर की लहर हैं
ये सुबह हैं -शाम हैं ये
रात दिन ये दोपहर हैं
मृत्य से भी हर कदम पर
शक्ति भर अपनी लडे हैं।

सूर्य की किरणो सरीखे ये
हवा के विमल झोंके
आग हैं ये बाढ हैं ये
शब्द रथ को कौन रोके
ये स्वयंभू बरगदों की भांति
धरती में गडे हैं।

इन्द्र्धनुषीमेघ हैं ये
छन्दमय आकाश हैं ये
ये समर के शंख अनहद
ये सृजन हैं नाश हैं ये
वेद हैं ये नीति हैं ये
कर्म बनकर ये खडे हैं।

कोकिला हैं हंस हैं ये
मोर हैं ये बुलबुले हैं
कहीं तीखे कहीं मीठे
कंठ में सबके घुले हैं
ये अजंता की गुफाएं
ये सुधारस के घडे हैं।(जुगलबन्दी से)

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