गद्यकार आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री
लेखक:पाल भसीन/प्रकाशक:प्रकाशन संस्थान,नई दिल्ली-110002/मूल्य-500/
पुस्तक परिचय
भसीन ने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के गद्य साहित्य की गुत्थियों को स्वयं आचार्य के साथ “प्रहर दिवस मास” का उपनिषद करके ही सुलझाया है।यह ग्र्ंथ आत्मीय तटस्थता का परिणाम है।संस्मरण,आलोचना,कहानी,उपन्यास आदि को आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री ने अपनी ही मान्यताओं के आलोक में सिरजा है।इस ग्रंथ के माद्ध्यम से पाल भसीन ने शास्त्री जी के गरिष्ठ गद्य साहित्य का संवेदनात्मक विश्लेषण कर ऐतिहासिक महत्व का कार्य किया है।शास्त्री जी के साहित्य कानन मे प्रवेश के इच्छुक के लिए यह एक उपयोगी ही नही अनिवार्य ग्रंथ है।
-डाँ राजेन्द्र गौतम (पुस्तक के फ्लैप से)
adarniy pal bhaseen ji sadyah prakashit kriti ke liye apko hardik badhai , swikaren
जवाब देंहटाएंdr sahab pranam apka sakshat kar kab tak dekh padh sakuga yaha.. pratiksha ke sath apka......
जवाब देंहटाएंयहाँ आने के लिए और बधाई देने के लिए आभार।
हटाएंसम्मानीय भाई मिश्र जी यों तो आपसे पहली बार स्व. निर्मम जी के साथ भेंट हुई थी ,उसके बाद इंटरनेट एवमआपसे भोपाल के प्रतिष्ठित साहित्यिक कार्यक्रमों में आपको सुननेतथा मिलने जुलनेके सुअवसरों का लाभ उठाया .आज छंद प्रसंग में दो मूर्धन्य ,शीर्षथ ,सिध्द,सा हित्यकारों आदरणीय देवेन्द्र शर्मा इंद्र एवम माहेश्वर तिवारी के सम्बन्ध में नवगीत के तारतम्य में उनके ८० बी
जवाब देंहटाएंवर्ष [सौभाग्य सेउनका और मेरा भी ८० वां वर्ष के साथ जन्म तिथि भी ०१.०४.१९३४ है ] की शुभ वेला उनके सृजनके प्रेरणा स्रोत से अवगत होकर अभिभूत हुआ .यधपि बहुत पहिले बंधुवर मेरे तथा उनके सहपाठी आदरणीय यतींद्रनाथ राही ने बातोंबातोंमें बताया थाआज उसकी परिपुष्टि आपके आत्मीय संबंधों ने विस्तार से अवगत कराया .उनकी शुभ कामनाय्एं शु भाशीश मेरे साथ हैं. उसके
लिए आप शत शत बधाई स्वीकारें .दोनों की शतायु की शभ कामनायों के साथ .
डॉक्टर आनन्द
छंद प्रसंग में दो मूर्धन्य ,वरिष्ट ,शीर्षथ साहित्यकारों सम्माननीय श्री देवेन्द्र शर्मा इंद्र एवम माहेश्वर तिवारी के अतुलनीय नवगीत के अवदान तथा उनके स्रजन के प्रेरणाश्रोत [विशेष रूपसे ]इंद्र जीके सम्बन्ध मेंआपने अपने
जवाब देंहटाएंआत्मीयता के आधार पर जो प्रकाश डाला उससे अभिभूत हुआ यध्यपि बहुत पहले मेरे तथा उनके सहपाठी
सम्मानीय यतींद्रनाथ राही ने बातोंबातों में प्रकाश डालाथा उनकी बेटी के सम्बन्ध में ,आज उससे उनके स्नेह त्याग की कहानी से गुजरना अविश्मर्नीय होगया .सौभाग्य से उनकी जन्मतिथि ०१.०४ .१९३४ मेर्री भी है और उनकी
शुभकामनाएं/शुभाशीश मेरे साथ हैं जबसे उनसे दूरभाष से राही जी के माध्यम से परिचय हुआ .दोनों शतायु की
कामना के साथ ताकि साहित्य को उनके अमूल्य स्रजन की धरोहर अगली पीढ़ी सदियों लाभान्वित होती रहे .
इस सबका श्रेय डाक्टर भारतेंदु मिश्र जी को देना चाहूगा जिन्होंने अपने विदुतापूर्ण समसामयिक आलेखों से हम सब तक पहुँचाया .डाक्टर मिश्र जी से मेरा पहला परिचय स्व निर्मम जी से भोपाल में हुआ था उसके बाद उनके भोपाल के की प्रतिष्ठित साहित्य कार्यक्रमों की सहभागिता के समय तथा इंटरनेट पर हुआ उस सबकी यादें ताज़ा हो गईं .,शत शत बधाई.इस सबको आप अन्यथा न लें इन सबके साहित्यिक अवदान मेरे लिए प्रेरणा के श्रोत हैं
आदरणीय ,आपका आभार |आपके विचार मुझे प्रेरणा देते रहेंगे|
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