समीक्षा -
# डॉ. भारतेंदु मिश्र
ब्रजभाषा हिन्दी कविता की प्राचीन भाषा है जिसमें कई
शताब्दियों की शब्द संपदा , लोक जीवन के
चित्र और जीवनानुभव संजोये हुए हैं| ब्रज भाषा के माध्यम से कई शताब्दियों तक
कविताई की जाती रही| राधा और कृष्ण की अनन्य लीला छवियों का प्रकटीकरण ब्रज भूमि
और ब्रजभाषा से ही संभव हुआ| विशाल वैष्णव मत पूरे भारत भू भाग में इसी ब्रज भाषा
के लोक जीवन से निकले संत कवियों द्वारा
प्रसारित किया गया| ब्रजभाषा की कविताई और उसकी शब्द संपदा केवल ब्रज भूमि तक ही
सीमित नहीं रही| मध्यकाल में ब्रजभाषा ही पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण सभी दिशाओं में
कविता का माध्यम बनी|यही कारण है कि वैष्णव मत के साथ ब्रज भाषा की विशाल साहित्यिक सांगीतिक तथा सांस्कृतिक
परंपरा भी हमारे समाज में दिखाई देती है|
रज़ा फाउन्डेशन और राजकमल प्रकाशन की ओर से पुनर्प्रकाशित ‘ब्रज
ऋतुसंहार’ शीर्षक इस नए सन्दर्भ ग्रन्थ को स्वर्गीय प्रभुदयाल मीतल द्वारा संकलित
किया गया था | स्वर्गीय प्रभुदयाल मीतल का नाम ब्रजभाषा और संस्कृति के विशेषज्ञ के
रूप में बहुत आदर से लिया जाता है|प्रस्तुत सन्दर्भ ग्रन्थ का संकलन और प्रस्तुति
उन्ही के द्वारा की गयी है|इस संदर्भ ग्रन्थ में 961 चुनी हुई ब्रज भाषा की ऋतु
संबंधी रचनाएँ संकलित हैं|इसके प्रथम संस्करण की भूमिका महापंडित राहुल
सांकृत्यायन ने लिखी थी| हालांकि ‘ब्रज ऋतुसंहार’ ग्रन्थ में संकलित सभी कविताओं
को यथारूप समझ पाना मेरे लिए भी सहज नहीं रहा |ये मध्यकालीन कवियों की सदियों पुरानी शब्द संपदा अल्प चलन के
कारण भी अति गरिष्ठ और गंभीर होती जा रही है| हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रमों से इन
अनेक कवियों को पहले ही बहिष्कृत किया जा चुका है|
ऋतुओं के ब्याज से श्रृंगार वर्णन करने की पुरानी परंपरा है जो
संस्कृत,पाली,अपभ्रंश से होते हुए ब्रजभाषा तक निर्बाध गति से आयी | अन्य
लोकभाषाओं में और खड़ीबोली में भी कदाचित ऐसे प्रयोग कवियों ने किये है,लेकिन
ब्रजभाषा के बारहमासा की बात ही कुछ और है| लोक जीवन और भारतीय ब्रजभाषा -संस्कृति से परिपूर्ण इस संकलन में उदात्त
काव्यानुभव के मार्मिक चित्र प्राय: देखने को मिलते हैं| ऋतु वर्णन के
साथ ही ‘बाराहमासा’ की परिपाटी का भी निर्वाह हमारे कवियों ने बखूबी किया है| राहुल
सांकृत्यायन जी के शब्दों में-
‘मीतल जी ने ब्रजकाव्य- महोदधि से ऋतु वर्णन के इतने अधिक और
सुदर रत्नों को एकत्रित कर साहित्य प्रेमियों का बहुत उपकार किया है| उनके ब्रज
साहित्य के गंभीर ज्ञान और उनकी न विश्राम लेने वाली लेखनी से ब्रजभाषा साहित्य के
प्रचार और उसे प्रकाश में लाने के लिए अभी बहुत आशा की जा सकती है|’ (पृ-16,ब्रज
ऋतुसंहार) यह महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रस्तावना के रूप में राहुल जी ने 26 जून 1950
में लिखी थी| जाहिर है कि यह कार्य ब्रजभाषा और लोक साहित्य के ऋतु वर्णन को समझने
के लिए अत्यंत महत्त्व का है| आधुनिकता के प्रवाह में हमने जाने अनजाने अपने
प्राचीन साहित्य के गौरव ग्रंथों को सब प्रकार उपेक्षित और तिरस्कृत भी किया है|
रज़ा फाउन्डेशन द्वारा इसे पुनर्प्रकाशित करने से सदियों पुरानी ब्रज संस्कृति और साहित्य को नया आयाम मिला है|
रमाशंकर दिवेदी जी का आलेख इस पुस्तक की उपयोगिता को और बढाता है| ये सन्दर्भ
ग्रन्थ-सूरदास,केसवदास,गिरधरकवि,घनानंद,सेनापति,ठाकुर,बोधा,बेनी,ऋषीकेस
,ब्रजपति,मुरारि आदि के अलावा सेवक,हरीचंद,सूरजदास,पद्माकर जैसे शताधिक
रीतिकालीन ब्रजभाषा के कवियों की कविताई से हमें संपृक्त और संपन्न करता है| ये संचयन
रचनात्मक वैभव से संपन्न टकसाली छंद घनाक्षरियाँ,कबित्त,सवैया,दोहा,सोरठा आदि हिन्दी कविताई की परंपरा में व्याप्त कई
शताब्दियों की ब्रज सरस्वती का महत्वपूर्ण दस्तावेज है| हालांकि आज के नए कवि इस
प्रकार की कविताओं से प्राय: अनभिज्ञ और अछूते रहना ही पसंद करते हैं|जैसे जैसे
विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम बदलते गए इन कवियों की जगह नए कवियों ने ले ली|नए
कवियों के प्रगतिशील सामाजिक सरोकार अपनी जगह हैं लेकिन प्राचीन सांस्कृतिक
महत्त्व की कविताई को भारतीय कविता की अस्मिता के गौरव के रूप में अवश्य पढ़ा जाना
चाहिए| ये लोक की ही शक्ति है जिसने अपने कवियों को आदर पूर्वक याद रखा |अब तो
पिछले कई दशकों से खासकर हमारे शीर्ष आलोचकों द्वारा लगातार उपेक्षा किये जाने के
कारण लोक भाषाओं का और उनमे काम करने वाले
रचनाकारों का कोई नामलेवा नहीं है| रस छंद और भारतीय काव्य मूल्यों वाली कविता
परंपरा से अलग समकालीनता के नाम पर केवल विचारधारा का पिष्टपेषण करना ही नई पीढी
के प्राध्यापकों को सुविधाजनक भी लगता है| इस सन्दर्भ ग्रन्थ को भी स्वयं पढ़कर
उसका अर्थ लगा लेने वाले प्राध्यापक विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों में शायद बिरले
ही मिलेंगे|
बहरहाल प्राध्यापकों द्वारा बखूबी प्रसारित किये गए आधुनिकता
और उत्तर आधुनिकता के सामाजिक सरोकार और उनके महाभ्रमजाल के बाद भी न बारहमासा
अप्रासंगिक हुआ है, न ऋतुए अप्रासंगिक हुई हैं और न ब्रज भाषा ही महत्वहीन हुई है|
हाँ हमने अपनी प्राचीन संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देने वाली शैली संवेदना की विरल
भावभंगिमाएँ और शब्द संपदा अवश्य खो दी
है| ब्रज की लोक चेतना को संरक्षित करने की दृष्टि से इस पुस्तक का सन्दर्भ ग्रन्थ
के रूप में सचमुच बहुत महत्त्व है|
कालिदास कृत ‘ऋतुसंहार’ किसी न किसी रूप में काव्यात्मक ऋतु वर्णन
का प्रमुख सांस्कृतिक स्रोत माना जाता है| इसके बाद तो प्राय: विभिन्न भाषाओं में
ऋतु वर्णन अपनी तरह से लिखा गया|प्रस्तुत संचयन में सभी ऋतुओं को लेकर कई
शताब्दियों के विभिन्न कवियों के चुने हुए छंदों को संग्रहीत किया गया है|इसप्रकार ये
सन्दर्भ ग्रन्थ अनेक प्रकार से कविता प्रेमियों के लिए पठनीय ही नहीं अपितु
संग्रहणीय भी जान पड़ता है| ‘पद्माकर’ का
एक छंद देखिये-जिसमें प्रोषितपतिका विरहिणी नायिका अपनी वियोग की दशा का
स्वाभावोक्ति के रूप में निरूपण कर रही है| अपने प्रिय के सन्देश के बिना वसंतागम
में उसका जीवन लगभग दूभर हो गया है, विवशता की हालत ये है कि वह मोहन मीत के बिना
राधा के भाव से न तो अपना दुःख किसी से कह पा रही है और बिना कहे रह भी नहीं पा
रही है--
बीर अबीर अभीरन को दुख,भाखे बने न बने बिन भाखैं |
त्यों पद्माकर मोहन मीत के ,पाए संदेस न आठएँ पाखैं |
आये न आप,न पाती लिखी,मन की मन ही में रहीं अभिलाखैं |
सीत के अंत बसंत लाग्यो,अब कौन के आगे बसंत लै राखैं ||
ऐसी ही अनेक
भावभंगिमाओं और राधा -कृष्ण प्रेम संयोग वियोग से परिपूर्ण इस श्रेष्ठ संचयन को
ब्रज भाषा ही नहीं वरन हिन्दी कविता और पारंपरिक काव्यालंकार,संगीतशास्त्र खासकर
राग रागिनियों की दृष्टि से भी संदर्भित किया जा सकता है| ब्रज में फाग और होली से
संबंधित कविताओं की परंपरा तो निराली ही है|रीतिकालीन कवियों के होली और फाग विषयक
ये कवित्त किन किन रागों में दरबारों में संगीतकारों द्वारा गाये जाते थे इसका भी
उल्लेख इस ग्रन्थ में मिलता है| संस्कृति और शास्त्रीय गायन में रूचि रखने वालों
को भी यह ग्रन्थ एकबार अवश्य पढ़ना चाहिए|
**********************************************************
शीर्षक-ब्रज ऋतुसंहार /संकलन-प्रभुदयाल
मीतल/ प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन प्र.लि., नई दिल्ली /मूल्य-रु-750 /प्रथम
संस्करण-2018
संपर्क- सी-45/वाई -4,दिलशाद गार्डन ,दिल्ली-110095
फोन-9868031384
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें