नवगीत की परंपरा (क्रमश:)
न कोई बिम्ब न कोई चमत्कार,न कोई दूर की कौड़ी लाने का प्रयास ही किया गया|नवगीत की परंपरा को जाने समझे बिना जो लोग नवगीत क्या है पूछने लगते हैं,या जो कहते हैं कि नवगीत को गीत ही मान लिया जाए तो क्या फर्क पडेगा उन चिंतन शील युवा नवगीतकार मित्रों के लिए साझा कर रहा हूँ|गलेबाज मंचीय लोगों के लिए नहीं ये उन्हें कतई अच्छा नहीं लगेगा-
अकाल के बाद
अकाल के बाद
कई दिनों तक चूल्हा रोया
चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया
सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर
छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी
हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर
कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर
कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें
कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें
कई दिनों के बाद।---नागार्जुन
नवगीत की परंपरा
नवगीत आन्दोलन के प्रारंभिक दिनों का नवगीत है|जब त्रिलोचन जी बनारस में रहते थे|शंभुनाथ सिंह जी उनके मित्र थे|और ये चित्र डॉ.नामवर सिंह जी के साथ गंगा तट का है| नवगीत के शिल्प को समझने के लिए युवा मित्रों हेतु साझा कर रहा हूँ-आज मैं अकेला हूँआज मैं अकेला हूँअकेले रहा नहीं जाताजीवन मिला है यहरतन मिला है यहधूल में कि फूल मेंमिला है तो मिला है यहमोल तोल इसकाअकेले कहा नहीं जाता|सुख आये दुख आयेदिन आये रात आयेफूल में कि धूल मेंआये जैसे जब आयेसुख दुख एक भीअकेले सहा नहीं जाता|चरण हैं चलता हूँचलता हूँ,चलता हूँफूल में कि धूल मेंचलता मन चलता हूँओखी धार दिन कीअकेले बहा नहीं जाता|(-धरती )
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