रविवार, दिसंबर 16, 2018


Gulabsingh.jpg
(गुलाब सिंह -9936379937)


गुलाब सिंह के नवगीत # भारतेंदु मिश्र 




  

बैसवारा नवगीत समारोह (नवम्बर -2018) से लौटते समय अनेक कवियों की जो पुस्तकें मिलीं उनमें गुलाब सिंह जी की दो पुस्तकें भी शामिल हैं जो मुझे कुछ कहने के लिए प्रेरित कर रही हैं| एक समय था जब नवगीत में आंचलिक बोध के स्वर बुहत मार्मिक ढंग से उभर रहे थे| ठाकुर प्रसाद सिंह के नवगीत हिन्दी नवगीत की परंपरा को आगे बढाते हैं| इसी क्रम में देवेन्द्र कुमार तथा अन्य आंचलिक स्वर के नवगीत साधकों का भी नाम लिया जा सकता है| सत्तर के दशक से नवगीत सृजन में सक्रिय हुए चर्चित वरिष्ठ नवगीतकार गुलाब सिंह की रचनाएं डॉ.शंभुनाथ सिंह जी ने ‘नवगीत दशक-2’ में और ‘नवगीत अर्धशती’ में संकलित की थीं| उनके गीतों में गाँव की प्राकृतिक सुगन्ध अपने मुहावरे के साथ विद्यमान है| जहां तक मैं समझता हूँ वे मंचीय कविता के प्रपंच से अपनी रचनाशीलता को बचाए रखने में समर्थ रहे हैं|नवगीत की सही दिशा इसी ओर आगे बढ़ते रहने से दिखाई देती है| एक अंश देखें-
‘शब्दों के हाथीं पर /ऊंघता महावत है/गाँव मेरा/लाठी और भैंस की कहावत है|
शीत घाम का वैभव/रातों का अन्धकार/पकते गुड़ की सुगंध/धुल धुंए का गुबार|
पेट पीठ के रिश्ते ढो रहा यथावत है|’  ( 25-धूल भरे पाँव)
गुलाब सिंह के अब तक चार नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जो क्रमश:-धूल भरे पाँव,बांस वन और बांसुरी,जड़ों से जुड़े हुए’ और ‘कभी मिटती नहीं संभावना’ हैं| उन्होंने बहुत अधिक नहीं लिखा जैसे लोग सुबह शाम नवगीत जोड़ने में लगे रहते हैं वैसा नहीं बल्कि अपने ग्रामीण आंचलिक जीवन के यथार्थ को रागात्मक स्वर में अपनी आंचलिक जनता यानी किसान और श्रमिक वर्ग के लिए लिखा| जिसने पूर्वी अवधी वाले आंचलिक गाँव के दृश्य और लोक जीवन को निकट से नहीं देखा उन्हें गुलाब सिंह के नवगीतों के निहितार्थ को समझाने में कठिनाई हो सकती है| लेकिन गुलाब सिंह के नवगीत अपने पाठक के सुख दुःख को यथारूप रखने में समर्थ हैं| एक चित्र देखें-
‘रामदीन/ अंधियारे की कुछ परतें फाड़ रहे|
खुरपी लेकर/ मरी भैंस की खाल उतर रहे|’ (35 -धूल भरे पाँव)
नवगीत में इस प्रकार के चित्र उमाकांत मालवीय,रमेश रंजक,सत्यनारायण,महेश अनघ,कैलाश गौतम,  और दिनेश सिंह  के यहाँ भी देखने को मिलते हैं| तात्पर्य यह कि ये कोई एकदम नए प्रयोग नहीं हैं तथापि इनमें अनुस्यूत अपने समय की पीड़ा अपने समाज के साक्ष्य नवगीत की दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गए हैं|
गुलाब सिंह जी की कविताई में –खेत ,बाग़ ,किसान की सामाजिक स्थिति गाँव की श्रमशील स्त्रियों के बिम्ब कटी हुई फसलों के साथ नवगीत की पूंजी बन जाते हैं|दूसरी ओर मछली,भात,नदी और पाल के सामंती सवाल भी कवि अपने बिम्बों से हल करने का प्रयत्न करता है| एक अंश देखें-
बांस पर बैठे परिंदे/हवा का रुख भांपते हैं
जब हबेली में लगे/ रंगीन परदे कांपते हैं|
एक शहजादी समय पर /छींट जाती चार दाना
जल है भीतर नदी के/ घाट से हट कर नहाना|( 12-बांस वन और बांसुरी )
पूर्वी अवधी में और भोजपुरी में छींट जाने का जो अर्थ है जबतक वह नही समझा जाएगा तब तक इस गीत बिम्ब को समझना कठिन होगा| दान करना या दक्षिणा स्वरूप अपनी प्रजा को कुछ देना ही छींट जाने का अभिप्राय है| यहाँ यह शब्द ही नहीं बल्कि पूरी दान दक्षिणा देने की परंपरा है उसकी लोक व्यंजना उभर कर सामने आयी है|पूरा नवगीत बिम्ब नए कथ्य के साथ मार्मिक तो है ही लोक व्यंजना के कारण इसमे अतिरिक्त सौन्दर्य की अभिव्यक्ति हो रही है|ऐसे अनेक नवगीत बिम्ब कवि के गीतों को नयी व्यंजना देते हैं-
‘धुले पान सी नर्म हथेली/उभरी हुई लकीरें
तेज छुरी सी साँसें /मन का हराहरापन चीरें|’(21-बांस वन और बांसुरी)
नए बिम्बों को नए कथ्य  और नयी भाषा के साथ जोड़ने का उपक्रम जब गीत की रागात्मकता में ढलता है ,तो नवगीत बनाता है,परन्तु नयापन लाने में तुकांत खोजने में जब कहीं भूल हो जाती है या संतुलन बिगड़ता है तो शिल्प कमजोर हो जाता है|एक अंश देखें-
‘पांवों से उलझी पगडंडी/दूर पड़ाव हुए|
..................................................
अंतरिक्ष से धरती के हों रोज सलाम – दुए |’  (81-बांस वन और बांसुरी) यहाँ गीत तो अपनी जगह है लेकिन ‘सलाम दुए’ प्रयोग मेरे हिसाब से उचित नहीं लगता,क्योकि सलाम दुआ का प्रयोग किया जाता  है | दुआ का बहुवचन दुआएं बनेगा| नवगीत की साधना में कथ्य और शिल्प दोनों का संतुलन बनाना आवश्यक होता है|जहां तक कथ्य की बात है तो गुलाब सिंह जी के गीतों में आंचलिकता का जन पक्ष बखूबी उभरता है सामंती मूल्यों पर एक और मार्किक व्यंग्य देखें-
हाथी पर सोने के हौदे/घोड़े पर चांदी की जीन
दोनों के चलने की खातिर/हम होते हैं सिर्फ जमीन| (82- बांस वन और बांसुरी)
अंतत: वरिष्ठ कवि गुलाब सिंह के नवगीत हमारे नए नवगीतकारों को कथ्य की विस्तृत जमीन लिए दिखाई देतें हैं| उनकी रचनाशीलता का स्वागत है | मुझे लगता है कि सभी आंचलिक और देशज शब्दों को साधकर ही प्रयोग किया जाना चाहिए|

संपर्क - 9868031384,b.mishra59@gmail.com 

______________________________________________________________________

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. Mahesh Katare Sugam
    Mahesh Katare Sugam- aabhar
    Kumar Ravindra भाई गुलाब सिंह नवगीत की एक समृद्ध भंगिमा और परम्परा के संवाहक हैं। भारतेन्दु भाई, नवगीत के क्षेत्र में उनके विशिष्ट अवदान पर आपके इस निबंध का स्वागत है। हार्दिक आभार

    Chandra Prakash Pandey बधाई भारतेन्दु जी / बहुत बढ़िया समीक्षा की आपने ।
    मालिनी गौतम
    मालिनी गौतम बढ़िया समीक्षा सर....आभार गुलाब सिंह जी के नवगीत जगत से परिचय करवाने हेतु

    संध्या सिंह
    संध्या सिंह गुलाब सिंह जी वो शख्शियत हैं जो कभी प्रसिद्धि के पीछे नही भागे
    लेकिन उनके गीत मील के पत्थर है
    आपने बहुत अच्छा समीक्षात्मक आलेख लिखा आदरणीय
    Raja Awasthi गुलाब सिंह जी वरेण्य नवगीत कवि हैं। बधाई आदरणीय मिश्र जी।
    Yogendra Datt Sharma नवगीत के क्षेत्र में गुलाब सिंह जी की धज कुछ अलग और अनोखी ही है। वह सशक्त और महत्वपूर्ण रचनाकार हैं।

    Ram Kumar Krishak गुलाब सिंह जी के नवगीत पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने का अवसर मिलता रहा है । गीत के प्रति उनकी गंभीरता का एक प्रतिमान उनके द्वारा संपादित पत्रिका 'नये - पुराने 'भी सदा स्मरणीय रहेगी । उनके नवगीतों को लेकर आपने अत्यंत सारगर्भित टिप्पणी की , इसके लिए बधाई !

    कल्पना मनोरमा -आप दोनों को प्रणाम नमन
    Subhash Vasishtha आलेख श्लाघ्य व स्वागतयोग्य है।


    Om Nishchal Nice appreciation.
    Jairam Jay सुन्दर आलेख
    Janki Prasad Sharma ख़ूब लिखा।इस टिप्पणी की क़द्र की जानी चाहिए।गुलाब सिंह जी की कविता पर इस नज़रिए से कम बात हुई है।
    Bhartendu Mishra जी शुक्रिया।
    Ganesh Gambhir गुलाब सिंह जी के नवगीतों के प्रवेश द्वार की तरह है आपका आलेख ।
    Ved Sharma आपको व गुलाब सिंह जी दोनों को बधाई ।आपका आभार
    Ashok Sahni congratulations
    Jay Krishna Singh Good b job.
    Suresh Salil गुलाब सिंह जी कहां के हैं ?..
    जो बात आपने उनकी कविता के बारे में कही है वह आज के समय में महत्वपूर्ण है । पहले लोकरंग के ऐसे स्वर अकसर सुनाई दिया करते धे ।अवधी में पढीस,वंशीधर शुक्ल,रमयी काका और नागर भाषा में रामबिलास जी,शिवबहादुर सिंह भदौरिया,लवकुश दीक्षित विशेष रूप से याद आ रहे हैं ।
    Bhartendu Mishra जी ,ये इलाहाबाद के हैं|शंभुनाथ जी ने इन्हें नवगीत दशक -2 में शामिल किया था|
    Bhartendu Mishra
    कोई जवाब लिखें...


    SP Sudhesh गुलाब सिंह पर आप की टिप्पणी
    ज्ञानवर्धक है । पढ़ कर अच्छा लगा ‌। उन के प्रकाशक कौन हैं । उन का संग्रह
    पढ़ना चाहता हु ।
    Awanish Tripathi SP Sudhesh जी सर उत्तरायण प्रकाशन लखनऊ से आद0 Nirmal Shukla जी ने प्रकाशित किया है।उनसे आप मंगवा सकते हैं।
    9839171661
    Bhartendu Mishra
    कोई जवाब लिखें..
    Arvind Yadav सादर आभार।
    Ramesh Gautam आ.बहुत सारगर्भित समीक्षा ,गुलाब सिंह जी का पूरी रचनाशीलता का परिचय ,आप खूब लिखते हैं ,धन्यवाद
    Bhartendu Mishra ने जवाब दिया
    Awanish Tripathi नवगीतों पर समीक्षा की एक विशेष दृष्टि की आवश्यकता सदैव रही है और यह खालीपन निरन्तर बना हुआ है।इधर बीच में बहुतेरी समीक्षाएं और आलोचनाएं आश्वस्त करती हैं कि नवगीत को कायदे से समझा जाने लगा है।आपकी समीक्षा दृष्टि उस बिडम्बना को महसूसते हुए सर्वथा प्रस्तुत होती है।आज भी मैं यही कहूँगा कि गुलाब सिंह के पुनर्प्रकाशित संग्रह पर आपकी यह टिप्पणी उनके नवगीतों में उपस्थित लोकरंग और तत्कालीन सामाजिक पक्ष में प्रवेश का द्वार खोलती हुई दिखती है।उनके नवगीतों में भाषा की पुरवैया बहती हुई दिखती है।हार्दिक बधाई
    Shrivallabh Vijayvargiya वाह!क्या कहने।

    जवाब देंहटाएं