बुधवार, अक्तूबर 25, 2017

इतिहास में दर्ज हुआ आदिवासी क्षेत्र में साहित्यकारों का जमावड़ा
“नवगीत और गज़ल पर केन्दित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं
रचनापाठ के निमित्त उमरिया में जुटे थे देश भर के मूर्धन्य साहित्यकार
(14-15 अक्टूबर -2017)
 विस्तृत रपट-


उमरिया || पूर्वी मध्यप्रदेश के छोटे से आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में नवगीत एवं गज़ल पर केन्द्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं रचनापाठ के निमित्त देश भर के साहित्य मनीषियों का जमावड़ा एक ऐतिहासिक परिघटना बन गया। पत्रकारों के सवालों के जवाब में वरिष्ठ कवि और म.प्र. शासन में अतिरिक्त सचिव राजीव शर्मा के बयान ने जैसे इस पर मुहर लगा दी। राजीव शर्मा ने कहा -‘‘ नवगीत एवं गज़ल पर आगे जब भी विमर्श होगा उमरिया में संपन्न हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी का संदर्भ अवश्य दिया जायेगा। बौद्धिकता और रचनात्मकता से परिपूर्ण यह गरिमामयी आयोजन इतिहास में दर्ज हो चुका है” |  
                 नवगीत और गज़ल पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और रचनापाठ का यह दो दिवसीय आयोजन दिनांक – 14-15 अक्टूबर 2017 को म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन की उमरिया जिला इकाई द्वारा किया गया था। जिसका उद्घाटन वरिष्ठ कवि डॉ. दिनेश कुशवाह, हिन्दी विभागाध्यक्ष अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा ने किया। अध्यक्षता, वरिष्ठ और बहुचर्चित गज़लकार महेश कटारे सुगमने किया। ख्यातिलब्ध समालोचक भारतेन्दु मिश्र, वरिष्ठ साहित्यकार पारस मिश्र, राजीव शर्मा, डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चन्द्र  डॉ.आर.पी.तिवारी और डॉ. परमानंद तिवारी और बतौर विशिष्ठ अतिथि उपस्थित रहे। स्वागत भाषण सम्मेलन की उमरिया इकाई के संरक्षक डॉ. रामनिहोर तिवारी ने और उद्घाटन सत्र का संचालन सम्मेलन की उमरिया इकाई के अध्यक्ष संतोष कुमार द्विवेदी ने किया। मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ. दिनेश कुशवाह ने बड़ी बेबाकी से गीत की विशेषताओं के साथ उन मर्यादाओं और ठहराओं पर तीखा कटाक्ष किया, जिसके कारण साहित्य में नवगीत आंदोलन का आरंभ हुआ।
विमर्श में साहित्य के वैश्विक परिदृश्य को समेटते हुए आपने याद दिलाया कि इतिहास, विचार और कविता के मृत्यु की घोषणा को क्या हम भूल सकते हैं? इस तरह की घोषणाएं करने वाले और उसकी शवयात्रा में शामिल होने वाले कौन लोग हैं? हमें उन्हें पहचानना होगा। आपने चेताया कि इतिहास, परंपरा बोध और कविता न मरी है न मर सकती है। कविता समाज के सामूहिक संवेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति है। अपने विस्तृत और विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान में आपने समकालीन नवगीत और गज़ल के लिए नये बिम्ब, नये प्रतीक, नई भाषा और नये शिल्प विधान के साथ ही साथ आम आदमी के शोषण और संत्रास के खिलाफ स्वर को अनिवार्य शर्त बताया। डॉ. परमानंद तिवारी ने नवगीत को नई पीढ़ी का काव्य बताया तो डॉ. आर.पी.तिवारी ने कहा कि निराला ने ‘‘नव गति नव लय ताल छंद नव’’ गाकर जिस काव्य परंपरा का पूर्व में उद्घोष किया था, उसे ही आज के नवगीतकारों ने एक नया मकाम दिया है। डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चन्द्रने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी को गलत समय पर उठाया गया सही कदम बताया। ‘‘राजा ने कहा रात है, मंत्री ने कहा रात है, संत्री ने कहा रात है, यह दोपहर की बात है’’ उद्धृत करते हुए आपने कहा कि जब सच का दम घोटा जा रहा हो तब पुरातन के व्यामोह से निकलकर नये कलेवर और नए तेवर के गीत गाने होंगे।
                    उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष समकालीन भाषाई गज़ल और हिन्दी नवगीतों के बहुचर्चित रचनाकार महेश कटारे सुगमने असहाय और अभावग्रस्त सामान्य जन की
पीड़ा, शोषण और अन्याय को मुखरित करना ही साहित्य सृजन का वास्तविक हेतु माना।
           संगोष्ठी के पहले विमर्श सत्र ‘‘नवगीत की परंपरा: दशा और दिशा’’ पर मुख्य वक्ता यशस्वी गीतकार और समालोचक डॉ. भारतेन्दु मिश्र ने कहा कि ‘‘हर गीतनवगीत नहीं होता लेकिन हर नवगीत में गीत के तत्व होना आवश्यक है। नवगीत युगीन यथार्थ को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। उसे हिन्दी कविता का
मध्यम मार्ग कहा जा सकता है। नई सदी में चर्चित हुए नवगीतकारों में डॉ. मालिनी गौतम, जय चक्रवर्ती, ओम प्रकाश तिवारी, चित्रांश बाघमारे, यशोधरा राठौर, पूर्णिमा बर्मन, रजनी मोरवाल, विनय मिश्र, वेद प्रकाश शर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। नवगीतकारों ने लोकभाषा और लोकजीवन के सरोकारों को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। वह छायावादी गीत से पर्याप्त भिन्न है। नवगीत की अपनी अलग पहचान है। कुल मिलाकर नवगीतकार ही हिन्दी कविता की समावेशी अवधारणा का पर्याय है। आपने माना कि नवगीत की परंपरा निराला से शुरू होती है और वही इसके जनक हैं।
              इस सत्र के हस्तक्षेप में नई पीढ़ी के बहुपाठित गीतकार राजीव शर्मा ने कहा कि नवगीत लोकजीवन को कविता का विषय बनाने और उसे कविता से जोडऩे की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। नई कविता की सपाटबयानी और दुरूहता से ऊबे पाठकों को रस और संवेदना की अनुभूति नवगीतों से मिली। लेकिन नवगीत भी अब उसी के शिकार हो रहे हैं जो चिन्ता का विषय है। डॉ. अमोल बटरोही ने कहा कि मौजूदा समय के कथ्य, शिल्प और प्रतीकों के कारण नवगीत एक अलग तेवर अख्तियार करते हैं। अन्यथा लयात्मकता और गेयात्मकता गीतों मे भी है और नवगीतों में भी है।  इस सत्र की पूरी चर्चा को समेटते हुए वरिष्ठ गीतकार कुमार शैलेन्द्र ने ध्वनि, रस और छन्दों के संबंध में बताते हुए भारतीय चिन्तन परंपरा एवं सृजन धारा का विस्तृत निरूपण किया। आपने कहा कि आलोचक भले ही नवगीत को खारिज करें अथवा हाशिये की कविता कहें वे हमेशा रहेंगे पढ़े, सुने, गाये और गुनगुनाये जायेंगे। इस सत्र का संचालन सम्मेलन की उमरिया इकाई के सचिव अनिल कुमार मिश्र ने और आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कवि शंभू सोनी पागलने किया।
                      पहले दिन के दूसरे सत्र ‘‘नवगीत में लोकतत्व’’ की अध्यक्षता नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर वेदप्रकाश शर्मा ने की तथा वरिष्ठ गीतकार शिवकुमार अर्चनने मुख्य वक्तव्य दिया। श्री अर्चन ने कहा कि नवगीत छायावादोत्तर कविता की प्रमुख धारा के रूप में उभरा। 1941 से 1950 के दशक में कविता के दो रूप दिखाई देते हैं। पहला पारंपरिक छन्दोबद्ध कविता दूसरा परंपरा भंजक, प्रयोग और प्रगतिवादी कविता। 1950 से 60 वाले दशक में कविता की सभी धाराएं एक मंच पर थीं। इसी को नयी कविता कहा गया। इसमें गीत काव्य भी था। अज्ञेय ने जिसे नई कविता का गीत कहा। बाद में इसी धारा के विकसित रूप को नवगीत कहा गया। आपने लोक की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि नवगीत ने न सिर्फ लोकचेतना और मानवीय सरोकारों की पक्षधरता सिद्ध की है अपितु लोक संवेदना और लोक रंजन से लेकर लोक मंगल तक की यात्रा तय की हैं। नवगीतों में आम आदमी के दुख, दर्द, घुटन, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी आदि की त्रासदी को गीतों का विषय बनाया गया और जनसंवाद धर्मिता अपनाई गई।
                   आपने ध्यान दिलाया कि यह स्थिति 80 के दशक के बाद बरकरार नहीं रह पाई । गीत लोकचेतना और लोकजागरण का वाहक नहीं रहा। वह जनसाधारण से कटने लगा। इसके पीछे कविता का वाचिक परंपरा से कटना भी था। इसके अलावा बाजारवाद, भूमण्डलीकरण, के बाह्य दबावों जीवनानुभव की कमी जनजीवन व जमीन से अलगाव जैसी कई अहम वजहें हैं।
             इस सत्र में प्रमुख नवगीतकार डॉ. मालिनी गौतम ने सार्थक हस्तक्षेप किया। डॉ. मालिनी गौतम ने कहा कि लोक में व्याप्त चेतना के आधार पर लोकधर्मी गीत की शिनाख्त करनी होगी। लोक में नगरीय जीवन और बौद्धिक मनुष्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती। रोजी रोटी की तलाश में लोग नगरों की ओर पलायन करते हैं लेकिन उनके लौकिक संवेग उनके अंतस्थल में सुरक्षित रहते हैं। नवगीत ने उन्हें खुरचा, देखा, उनसे संवेदना के स्तर पर जुड़ा और उन्हें अपना विषय बनाया। आपने आरोप लगाया कि साहित्य की बागड़बन्दी के कारण लोक उपेक्षित हुआ है। अभिजात्य उसके केन्द्र में आ बैठा है। हमें इस जड़ता को तोडऩा होगा। आपने कहा कि नवगीत में लोक चेतना लोकगीतों और लोकधर्मी उत्सवों से आती है, लोक मन और लोक व्यवहार से आती है, गली-गली घूमते साधुओं-फकीरों की सधुक्कड़ी और सूफियाना गायन से आती है, हमारी समावेशी सांस्कृतिक विरासत जिसमें अक्षत-रोली, चंदन-कुंकुंम, मंगल घट, गोरोचन, मस्जिद की अजान और मंदिर की घंटा ध्वनि जैसी तमाम चीजें समाहित हैं, उनसे आती है। आपने जोर देकर कहा कि प्रकृति और लोक संस्कृति के आसव से पगे नवगीत लोकतत्व के सच्चे वाहक हैं।
           डॉ. राम गरीब विकल ने उद्धरणों के साथ नवगीतों में लोकतत्व की प्राण प्रतिष्ठा के कई सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने नवगीतों में लय और छंदबद्धता की वकालत की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर वरिष्ठ कवि वेद प्रकाश शर्मा ने उद्घाटन सत्र से लेकर अब तक की चर्चा को समेटते हुए कई तल्ख टिप्पणियाँ कीं तथा नवगीत के समष्टिपरक दृष्टिकोण और भूमिका को स्पष्ट किया। आपने नवगीतकार देवेन्द्र शर्मा इन्द्रके नाम का उल्लेख करते हुए सवाल किया कि नई कविता वाले इस दौर के समर्थ व सशक्त नवगीतकारों को आखिरकार क्यों नहीं पढ़ते? यही नहीं नवगीतो में बिम्ब और प्रतीकों की दुरूहता के आरोप को लक्षित करते हुए पूछा कि क्या नवगीत के बिम्ब और प्रतीक मुक्तिबोध की रचनाओं से भी दुरूह हैं।
                    आपने कहा कि कविता की आत्मा सौन्दर्य है तथा इस सौन्दर्य की रक्षा छायावाद के कवियों ने जिस सुरुचिपूर्ण-सुसंस्कृत रूप से की है नवगीत ने युग यथार्थ के सम्यक बोध के साथ उसे कायम रखा है। नवगीत ने अपने समय के सामाजिक यथार्थ को समग्रता के साथ भिन्न-भिन्न रूपों में देखा है और इस प्रकार वह उसी ठोस  धरातल पर खड़ा है जिसका गुणगान करते हुए नई कविता नहीं थकती। इस सत्र का संचालन युवा गीतकार राजकुमार महोबिया ने तथा आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कवि रामलखन सिंह चौहान भुक्खड़ने किया।
                                                            
दूसरा दिन गजल के नाम
          दूसरे दिन का विमर्श गजल को समर्पित था। जिसमें “समकालीन गज़ल की दशा और दिशा” तथा “समकालीन गज़ल के बदलते उन्वान” पर जहीन और अजीज शायरों ने अपने विचार व्यक्त किए। पहले सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ गज़लकार कुंवर कुसुमेश ने की तथा मुख्य वक्तव्य वरिष्ठ पत्रकार एवं समालोचक नन्दलाल सिंह ने दिया। नन्दलाल सिंह ने समकालीन गज़ल की परंपरा को रेखांकित करते हुए उसके बदलते तेवरों को उद्धरणों के साथ स्पष्ट किया। आपने कहा कि समकालीन गज़ल ने सामाजिक कुरीतियों से लेकर धार्मिक, राजनीतिक व्यवस्था, शोषण और विषमता पर जिस साहस और सलीके से तंज कसे हैं वैसी बेबाकी अन्यत्र दुर्लभ है। इस सत्र में डॉ. नीलमणि दुबे ने हस्तक्षेप किया और कबीर से लेकर मौजूदा दौर की गज़ल के हवाले से स्पष्ट किया कि गज़ल का भविष्य उज्ज्वल है और अब तो वह भाषा का बैरियर तोडक़र लोकव्यापीकरण की ओर बढ़ रही है। युवा गज़लकार नजर द्विवेदी ने गज़ल में हिन्दी और उर्दू की जंग को बेमानी बताया | कथाकार, समालोचक संदीप नाइक ने कहा कि अपनी बात स्पष्ट करने के लिए शेर उधृत करना गजल की लोकप्रियता और जन स्वीकृति दर्शाता है |
           अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ गज़लकार कुंवर कुसुमेश ने कहा कि गज़ल की बहर हर गज़लगो को सीखनी ही चाहिए। मैंने 60 की उम्र में ट्यूशन लगाकर गज़ल का सलीका और शिल्प सीखा। उन्होंने बताया कि गज़ल की 32 बहरें होती है जिनमें से 17 प्रचलित हैं। सम्भव है अभी और बहरों पर गज़लें लिखीं जाएं और उन्हें भी मकबूलियत हासिल हो। इस सत्र का संचालन युवा गज़लकार कुलदीप कुमार ने और आभार सम्मेलन की साहित्य मंत्री मंजु ‘मणि’ ने व्यक्त किया।
                     ‘‘समकालीन गज़ल के बदलते उन्वान’’ विषय पर मुख्य वक्तव्य जहीन शायर अशोक मिजाज ने रखा और अध्यक्षता वरिष्ठ गज़लकार शाहिद मिर्जा ने की। अपने वक्तव्य में गज़लकार अशोक मिजाज ने कहा कि यदि हम गज़ल में बदलते हुए आयामों की खोज करते हैं तो पता चलता है कि यह एक झरना है जिसमें लगातार नवीनता बह रही है। उर्दू गज़ल जो कभी रवायती गज़ल के रूप में थी उसने जदीद गज़ल का रूप ले लिया है। पहले से चले आ रहे अरबी फारसी के शब्दों के स्थान पर आसान उर्दू के शब्दों में आज के प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग किया जाने लगा है।  आज के दौर की उर्दू जदीद गज़ल और हिन्दी गज़ल कहीं-कहीं एक होती दिखाई दे रही । इस दौर के जदीद गज़लकारों के कुछ शेर इस बात की पुष्टि के लिए काफी हैं। तहज़ीब हाफी के शेर देखिए ‘‘तारीकियों को आग लगे और दिया जले, ये रात बैन करती रहे और दिया जले। तुम चाहते हो तुमसे बिछड़ के भी खुश रहूँ, यानी हवा भी चलती रहे और दिया जले”।  इसी तरह मुईन शादाब का एक शेर देखिए तुमसे बिछड़ के सबसे नाते तोड़ लिये थे, हमने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे”। इन शेरों में शायरी की वह मुलायमियत और वह विषय भी है जिसके लिए गज़ल जानी जाती रही है लेकिन भाषा हिन्दी गज़ल की है।
                     इस सत्र में हस्तक्षेप करते हुए वरिष्ठ गज़लकार महेश कटारे सुगमने कहा कि गज़ल का दायरा अब हिन्दी उर्दू तक सीमित नहीं बल्कि भाषायी क्षेत्रों में भी उसका विस्तार हुआ है। आपने मौजूदा समय की विसंगतियों और विद्रूपताओं को गज़ल का विषय बनाने और नये प्रतीक गढऩे की हिमायत की। नसीर नाजुक ने पाकिस्तान के शायरों के कुछ शेर उद्धृत कर यह स्पष्ट किया कि हिन्दी और उर्दू गज़ल के बीच कोई सीमारेखा नहीं खींची जा सकती।
               अध्यक्षीय उद्बोधन में शाहिद मिर्जा ने कहा कि अरूजी होना और शायर होना अलग-अलग बातें हैं। ड्रायविंग के लिए गाड़ी की जानकारी और ट्रेफिक नियमों का ज्ञान जरूर होना चाहिए लेकिन मैकेनिक बनना कोई जरूरी नहीं।  जैसे  योग करने के लिए योगाचार्य होने की जरूरत नहीं। हम जिस भाषा का प्रयोग बोलचाल में करते हैं वो हिन्दी या उर्दू नहीं हिन्दुस्तानी जबान है। मात्र लिपि का ही अन्तर है।  
शायरी में आम बोलचाल की सरल भाषा में गहरी बात कही जाए तो आवाम तक जल्दी पहुंच जाती है। इस सत्र का संचालन युवा गज़लकार महेश अजनबीने किया और आभार प्रदर्शन वरिष्ठ कवि जगदीश पयासी ने किया।
नवगीत और गज़लों ने बांधा समां
                उमरिया में संपन्न हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में रात को रचना पाठ का सुरुचिपूर्ण आयोजन किया गया। 14 अक्टूबर की रात को नवगीत का एवं 15 अक्टूबर की रात को गज़ल का पाठ हुआ। देर रात तक चले रचनापाठ का नगर के सुधी                                                     श्रोताओं ने जमकर लुत्फ लिया। नवगीत के रचनापाठ की अध्यक्षता डॉ. दिनेश कुशवाह ने और संचालन वरिष्ठ गीतकार शिवकुमार अर्चनने किया। इसमें भारतेन्दु मिश्र, कुमार शैलेन्द्र, वेदप्रकाश शर्मा, डॉ. मालिनी गौतम, राजीव शर्मा, डॉ. राम गरीब विकलऔर कल्पना मनोरमा ने नवगीत पाठ किया।
               इसी तरह अगली रात गज़ल का पाठ हुआ। जिसकी अध्यक्षता शाहिद मिर्जा ने और संचालन अशोक मिजाज ने किया। गज़ल का आगाज युवा गज़लकार कुलदीप कुमार ने किया फिर क्रमश: राजिन्दर सिंह राज’, गीता शुक्ला, डॉ. नीलमणि दुबे, कासिम इलाहाबादी, महेश कटारे सुगमऔर शाहिद मिर्जा ने अपनी जहीन शायरी से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया ।
संगोष्ठी में पांच साहित्यिक कृतियां विमोचित
          संगोष्ठी में पांच साहित्यिक कृतियों का विमोचन किया गया। पूर्णेन्दु शोध संस्थान के संचालक वरिष्ठ कवि पूर्णेन्दु कुमार सिंह के दो काव्य संग्रह ‘‘केसर के सिवान’’ और ‘‘प्रात की रंगोली’’ महेश अजनबीऔर मंजु मणि के प्रथम काव्य संग्रह ‘‘बेसुरी सी बांसुरी’’ वरिष्ठ साहित्यकार विनोद शंकर भावुककी कृति ‘‘सीता जी की
जन्म कथाए’’ डॉ. शिवसेन जैन संघर्षके ‘‘सीमा शतक’’ और वाट्सएप ग्रुप में साझा की गयी चयनित रचनाओं के संग्रह ‘‘उड़ान’’ का विमोचन डॉ. दिनेश कुशवाह, महेश कटारे सुगम, कुमार शैलेन्द्र, भारतेन्दु मिश्र, वेद प्रकाश शर्मा, डॉ. मालिनी गौतम, कुंवर कुसुमेश और शाहिद मिर्जा और द्वारा किया गया।

साहित्यकार बांधव शिखर सम्मानसे अलंकृत
              इस आयोजन में साहित्य,कला और सामाजिक क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए रीवा और शहडोल सम्भाग के वरिष्ठ रचनाकारों, रंगकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बांधव शिखर सम्मानसे अलंकृत किया गया। साहित्य के लिए मूर्धन्य संस्कृति मनीषी नर्मदा प्रसाद गुप्त आचार्य’, दयाराम गुप्त पथिक’, डॉ. चन्द्रिका प्रसाद चन्द्र’, पूर्णेन्द्र कुमार सिंह, बाबूलाल दाहिया, डॉ. सत्येन्द्र शर्मा, डॉ. नीलमणि दुबे, डॉ. शिव शंकर मिश्र सरसको, शिक्षा क्षेत्र में जीतेन्द्र शुक्ला और विधिक साक्षरता के लिए यश कुमार सोनी को बांधव शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। इसी तरह रंगकर्म और लोक कलाओं के संरक्षण व संवर्धन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए नीरज कुंदेर, रोशनी प्रसाद मिश्र, नरेन्द्र बहादुर सिंह और करुणा सिंह को बांधव शिखर सम्मानसे अलंकृत किया गया। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी को इन्होंने बनाया सफल
            राष्ट्रीय संगोष्ठी को सफल बनाने में म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मलेन की उमरिया जिला इकाई के संरक्षक डॉ. राम निहोर तिवारी, श्रीशचन्द्र भट्ट,  एम.ए. सिद्दीकी, आत्मा राम शर्मा चातक’ , अध्यक्ष संतोष कुमार द्विवेदी सचिव अनिल कुमार मिश्र, कवि शम्भू प्रसाद सोनी पागल’, राम लखन सिंह चौहान भुक्खड़’, जगदीश पयासी , शेख धीरज , शंकर वर्मन कलारिहा’, राजकुमार महोबिया, शेख जुम्मन, जावेद मियांदाद, महेश अजनबी’, मंजु मणि’, प्रीती थानथराटे, अजमत उल्ला खान, भूपेन्द्र त्रिपाठी, वीरेन्द्र गौतम, दीपम दर्दवंशी, कीर्ति सोनी, सम्पत नामदेव, विनय विश्वकर्मा और रजनी बैगा आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।                                                
                                                          संतोष कुमार द्विवेदी
                                                          अध्यक्ष
                                                          म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन
                                                          जिला इकाई-उमरिया
                                                          वार्ड नं-14, विकटगंज, जिला - उमरिया (म.प्र.)
                                                          पिन 484661
                                                          मो. 9425181902


ई मेल – santoshjiumr@gmail.com

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