नवगीत की आत्मा और पूर्णिमा जी के ज्वलंत प्रश्न
जन का अर्थ है सामान्य मनुष्य-नवगीत मे सामान्य मनुष्य की पीडा और उसके सरोकारो की बात होती है।उस सर्वहारा की संवेदना/संघर्ष कथा/व्यंजना आदि।जन का विलोम है अभिजन।जन की पक्षधरता ही नवगीत की आत्मा है।हमारे मंचीय गीतकारो का समाज अभिजन की सेवा मे लगातार लगा रहा उन्हे ही खुश करता रहा है।उनका कीर्ति गायन नवगीत का लक्ष्य कभी नही रहा।दुनिया भर मे आज भी हाथ का काम करने वाले लोगो की संख्या अधिक है।उन्हे अनुशासित करने वाले लोगो की संख्या कम है।किसान /मज्दूर/कामकाजी महिलाए/सुरक्षाकर्मी/नर्स/इन छोटे छोटे कार्यो से जीवन निर्वाह करने वाले लोगो से 'जन' निर्मित होता है इनके पक्ष मे खडे होना ही नवगीत का अभिप्रेत रहा है।असल मे वही हमारी परंपरा है।महात्मा गान्धी ने क्यो आधी धोती ओढकर पूरी दुनिया को अपनी जनवादी लाठी से अपने सिद्धांतो का लोहा मनवाया।नेल्सन मंडेला ने कैसे जन के पक्ष मे लडकर जेल से संघर्ष करते हुए सत्ता को पराजित किया फिर नई व्यवस्था लागू की।अपने स्वार्थ के लिए सत्ता के पक्ष मे खडे होकर हम सत्ता के दलाल बन जाते हैं।इसीलिए दरबारी कवियो को इतिहास मे कभी सम्मान की दृष्टि से नही देखा गया।मंचीय गीतकार अक्सर मौका देखकर उत्सवधर्मी रचनाए लेकर ताली पिटवाते रहे।वह नवगीत का रास्ता नही है।जनपक्ष के लिए व्यापारिक घरानो/राजनीतिक दलालो/सत्ता के सहयोगियो/धार्मिक भक्तजनो -मौलवियों -पादरियों से अलग सोचवाले लोगो पर तटस्थ होकर विचार करना आवश्यक है।ऐसे लोग बहुत कम है जो धर्म की सत्ता चलाते है/जो राजनीति की सत्ता संभालते है/व्यापारिक जगत पर राज करते हैं।नवगीत उनके विपक्ष मे संघर्ष करने वाले आम जन के पक्ष मे खडा होता है।
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