शनिवार, अक्तूबर 25, 2014

जन्मशती पर विशेष:
सदियो तक याद किये जाएंगे गीतकार प्रदीप

डा.भारतेन्दु मिश्र

हमारे देश यानी भारतीय समाज मे साहित्य और सिनेमा दोनो एक दूसरे के बहुत करीब रहे हैं।असल मे अपनी प्रभावशाली संप्रेषण क्षमता के कारण नाटक, प्रकरण,नौटंकी और स्वांग आदि जैसे लोक नाट्य और नृत्य माध्यम जनता की भावनाओ को सदियो से आन्दोलित करने मे लगे हैं।
संवाद भाषा मे लिखे जाने वाले गीतो का सर्वाधिक प्रभाव जनमानस पर पडा है। कई सहस्राब्दियों पूर्व भरत मुनि ने नाटक मे प्रयुक्त होने वाले गीतो पर विचार करते हुए बताया था कि नाट्यगीत लोकानुसारी हों और जिस समाज के लिए नाट्क खेला जाना है उस समाज की भाषा और जीवन चेतना से जुडे हों। समय बदला और उसी परंपरा मे नाट्यगीतो का स्थान सिनेमा के गीतो ने ले लिया।जबसे होश संभाला अवध के सामान्य  संवेदनशील  मनुष्य की तरह आल्हा,रासगीत,रामचरितमानस तथा लोकगीतो के साथ ही तमाम फिल्मी गीतो से भी प्रभावित होता गया।खासकर-ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख मे भर लो पानी..सुनकर सचमुच रोमांच हो आता था।ये गीत आज भी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर विद्यालयो मे गाया जाता है। कवि प्रदीप का लिखी यह एक अकेली ऐसी गीत रचना है जिसके कारण प्रदीप जी अमर हो गए।सन 1962 मे भारत चीन युद्ध मे शहीद हुए जवानो को श्रद्धांजलि देते हुए कवि प्रदीप ने यह गीत रचा था।हालांकि सुर साम्राज्ञी लता जी ने इस गीत को गाया भी बहुत खूबसूरती से था लेकिन कवि का अपना स्थान होता है।शब्द और भाव सन्योजन मे कवि का स्थान  संगीतकार या गीतकार की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण होता है।  
उज्जैन मे 6 फरवरी 1915 मे जनमे कवि प्रदीप उन महान गीतकारो मे से एक हैं जिन्होने कोटि कोटि कंठो को पूरी संवेदना के साथ अपने गीत दुहराने पर विवश कर दिया। निश्चित रूप से ये सिनेमाई गीत दृश्य के हिसाब से लिखे और प्रस्तुत किए जाते हैं परंतु रचनाकार की भाषा और उसकी मार्मिक संवेदना उसकी निजता को व्याख्यायित करती चलती है।हिन्दी सिनेमा अपने सौ साल का सुनहरा सफर भी पूरा कर चुका है। 1943 मे रिलीज हुई गोल्डन जुब्ली फिल्म किस्मत के गीत-दूर हटो ए दुनियावालों हिन्दुस्तान हमारा है.....से कवि प्रदीप की पहचान बनी।इस गीत के कारण तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे और उन्हे उस समय भूमिगत होकर छिप छिपाकर अपना जीवन व्यतीत करना पडा। इस गीत ने तत्कालीन हिन्दी समाज मे देश भक्ति की भावना का जो संचार किया वह शब्दो मे व्यक्त नही किया जा सकता। हालांकि पहलीबार 1940 मे जारी हुई बन्धन फिल्म के भी कई गीत बहुत लोक प्रिय हुए थे जैसे –चल चल रे नौजवान.....चना जोर गरम बाबू...रुक न सको तो जाओ....आदि गीतो ने कवि प्रदीप को जो ख्याति प्रदान की वह बिरले ही कवि को मिल पाती है।सन 1954 मे फिल्म जाग्रति के गीतो ने प्रदीप जी को और बुलन्दी प्रदान कर दी थी-आओ बच्चो तुम्हे दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की..और –दे दी हमे आजादी बिना खड्ग बिना ढाल..जैसी अमर पंक्तियां देने वाले गीतकार प्रदीप आज भी करोडो बच्चों और नौजवानो के दिलो पर अपना अधिकार किए हैं।
पांचवां दशक लगातार संघर्ष का दौर था। भारतीय सिनेमा मे भी वही दौर चलरहा था तब हमारा बहुआयामी संघर्ष था।अजादी की लडाई,बीमारी- भुखमरी -गरीबी से लडाई,सांप्रदायिक तथा धार्मिक रूढियो से लडाई,सामाजिक और जाति बिरादरी की विसंगतियो से लडाई,माने हर ओर संघर्ष का ही दौर था।इन्ही परिस्थितियो मे स्वतंत्रता मिली मगर बटवारे के साथ-तो इन सब प्रकार के मानवीय संघर्षो को गीत की भाषा देने वाले गीतकारो मे कवि प्रदीप का नाम भी शामिल है। दिलोदिमाग पर छा जाने वाली भाषा किसी प्रदीप जी जैसे कवि के ही पास हो सकती थी जो प्रधानमंत्री पं नेहरू जी को अश्रुविगलित कर सके।पुराने लोगों को 26 जनवरी 1963 का वो दिन सबको अवश्य याद होगा।जब यह गीत दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारित किया गया था।कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष मे जमा कराने की अपील की और उच्चन्यायालय ने 25 अगस्त 2005 को संगीत कंपनी एह.एम.वी. को इस कोष में 10 लाख रुपए जमा करने का आदेश किया। यह उनका अति संवेदनशील मानवीय चेहरा भी है जो युद्धविधवाओ के बारे में सकारात्मक सोच रखता है।
प्रदीप जी ने सब तरह के गीत लिखे उनमे जयसंतोषी माता जैसी धार्मिक फिल्मो के भी गीत शामिल हैं, लेकिन उन्हे उनके देशभक्ति के गीतो के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।1998 मे उन्हे प्रधानमंत्री बाजपेयी जी के काल मे दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। अंतत: जोशीले हिन्दी गीतों के लिए सदियों तक प्रदीप जी को याद किया जाता रहेगा। जन्मशती वर्ष पर उन्हे याद करते हुए श्रद्धांजलि।
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