मंगलवार, अगस्त 25, 2009

(शोक गीत)

युवा कवि रामलखन के असामयिक निधन पर


रामलखन

तिकड्म की दुनिया मे रहकर
बहुत जी गये रामलखन
बडे बडो के बीच
छुपे रुस्तम निकले तुम रामलखन।

अपनी शर्तो पर जीने का हस्र
यही सब होना था
घरवालो को बीच राह मे
छोड गये तुम रामलखन।

कविता छूटी दुनिया छूटी
सारे सपने छूट गये
सच्चाई का कच्चा साँचा
छोड गये तुम रामलखन।

कल जिसको उँगली पकडाई
वह मासूम हथेली थी
बस उस पर उँगली का छापा
छोड गये तुम रामलखन।

4 टिप्‍पणियां:

  1. कविता के रूप में आपने एक सच्ची श्रृद्धांजलि !

    जवाब देंहटाएं
  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

    जवाब देंहटाएं
  3. इस कविता को पढ़कर भाई रामलखन का सीधा-सादा व्यक्तिचित्र आँखों के आगे आ खड़ा हुआ। रामलखन ने जीवनभर निर्धनता की मार को झेला लेकिन सिद्धांतो को नहीं छोड़ा। आपने ठीक ही लिखा है--तिकड्म की दुनिया मे रहकर
    बहुत जी गये रामलखन
    बड़े बड़ों के बीच
    छुपे रुस्तम निकले तुम रामलखन।

    देर से ही सही, उस रुस्तम को मेरी ओर से भी हार्दिक श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं