शुक्रवार, मार्च 19, 2010

दाम्पत्य का आदर्श

दाम्पत्य का आदर्श

(तुलसी कृत कवितावली से)

जलको गये लक्खन हैं लरिका
परिखौ पिय छाँह घरीक ह्वै ठाढे
पोछि पसेऊ बयारि करौं
अरु पाँय पखारिहौं भूभुरि डाढे
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानिकै
बैठि बिलम्ब लौ कंटक काढे
जानकी नाह को नेह लख्यो
पुल्क्यो तन बारि बिलोचन बाढे।

छन्द का प्रसंग

वन गमन का दृश्य है।राम आगे आगे चल रहे है।सीता उनके पीछे और उनके पीछे लक्ष्मण चल रहे है।सीता थक गयी है परंतु अपनी थकान का संकेत वे राम से नही करना चाहतीं।अत: पीछे मुडकर सीता लक्ष्मण को जल लाने का आदेश देती हैं,लक्ष्मण चुपचाप जल लेने के लिए चले जाते है। अत: एकांत पाकर सीता राम से कहती हैं। हे प्रिये,बालक लक्ष्मण जल लेने गये हैं,अत: घरी भर वृक्ष की छाया मे खडे होकर उसकी प्रतीक्षा कर लीजिए,कहीं वह राह न भटक जायें। तब तक मै आपका पसीना पोछकर अपने आँचल से हवा कर देती हूँ,जब लक्ष्मण पानी ले आयेगे तब आपके गर्म धूल मे जले हुए पैर धो दूँगी।
तुलसीदास कहते है कि अंतर्यामी श्री राम ने प्रिया सीता के ऐसा कहने पर तुरंत उनकी थकान का अनुभव कर लिया और वृक्ष के नीचे बैठकर बडी देर तक पैरौं के काँटे निकालते रहे,ताकि सीता इतनी देर विश्राम कर सके। जब अधिक देर हो गयी तो सीता को भी इस बात का अनुभव हुआ कि श्री राम मेरे प्रेम के ही कारण इतनी देर से काँटे निकालने के बहाने बैठे हुए है।इस दाम्पत्य प्रेम के इस अनुभव के बाद सीता को रोमांच हो आया,उनका सारा शरीर प्रफुल्लित हो गया और आँखों से प्रणय अस्रु बह निकले।

1 टिप्पणी:

  1. अच्छा, श्रंगार-प्रधान अंश। अवांछित को टरकाना स्त्रियों से बेहतर कोई नहीं जानता। लक्ष्मण भी संभवत: समझ गए होंगे। इसलिए शीघ्र जल न ले आकर किसी जल-स्रोत के किनारे जा लेटे होंगे।

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