गुरुवार, मार्च 07, 2013



नवगीत का नया सन्दर्भ-ग्रंथ
डाँ.भारतेन्दु मिश्र
प्रसिद्ध नवगीतकार एवं उत्तरायण के संपादक निर्मल शुक्ल द्वारा संपादित शब्दायन शीर्षक ग्रंथ गतदिनो प्रकाशित हुआ है बल्कि कहूँ कि निर्मल जी ने स्वयं ही प्रकाशित भी किया है तो सही होगा।कई मायने मे यह संकलन बहुत महत्त्वपूर्ण है।अपने विशाल आकार प्रकार के नाते ही नही इसमे संकलित सामग्री भी नवगीत और समकालीन नवगीतकारो को स्थापित करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।जहाँ कुछ मूर्खो द्वारा आत्म स्थापना के लिए नवगीत आन्दोलन की छवि नष्ट की जा रही है वहीं कुछ लोग निर्मल जी की तरह भी चुपचाप काम कर रहे हैं और जो लगातार अपनी उपस्थिति से नवगीत आन्दोलन की आँच को सुरक्षित रखने का जतन कर रहे हैं। इस ग्रंथ की विशेषता है कि यह कन्हैयालाल नन्दन के संकलन -श्रेष्ठ हिन्दी गीत संचयन -की तुलना मे तमाम नए सन्दर्भों से लैस होने के नाते अधिक महत्त्वपूर्ण बन गया है।इस नयी इक्कीसवीं सदी मे अब तक का वृहदाकर नवगीत संग्रह तो यह है ही।एक हजार से अधिक पृष्ठों वाले इस ग्र्ंथ के दो पक्ष हैं-एक नवगीतकारो का नवगीत के प्रति दृष्टिकोण और दूसरा-नए से नए नवगीतकार की उपस्थिति,समकालीन चर्चित नवगीतकार तो इसमे शामिल हैं ही।इस ग्रंथ मे 94 रचनाकारो का गद्य है और वरिष्ठ कनिष्ठ कुल-139 नवगीतकारो के चुने हुए यानी प्रतिनिधि गीत संपादक ने चुनकर संकलित किए हैं। कदाचित नवगीत की दिशा मे निर्मल शुक्ल जी का यह कार्य उनकी प्रतिष्ठा के साथ ही नवगीत आन्दोलन को भी प्रतिष्ठित करने वाला है।पठनीयता और सन्दर्भ के रूप मे संग्रहणीयता इस ग्रंथ की खास विशेषता है।

शीर्षक-शब्दायन पृष्ठ-1064, मूल्य-रु1200/ संपादक- निर्मल शुक्ल
प्रकाशन-उत्तरायण प्रकाशन,लखनऊ-226012

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