शुक्रवार, मार्च 27, 2009

छंदप्रसंग के आदर्श :

1 जयदेव:
जयदेव का आविर्भाव ग्यारहवी शती में हुआ।उनकी कृति गीतगोविन्द भारतीय साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं। जयदेव युगप्रवर्तक कवि के रुप मे जाने जाते हैं।जयदेव में कवि प्रतिभा के साथ- साथ दर्शन ,कला धर्म ,और संस्कृति की अनेक लोकोन्मुख परंपरायें एकाकार होती दिखायी देती हैं। वे संस्कृत भाषा के सहज गीतकार हैं। उनका छंदविधान अपने समय में बिल्कुल नया है।
जयदेव का गीति काव्य सामवेद की परंपरा में भरत, नारद जैसे संगीताचार्यों
तथा नाट्याचार्यों के सिद्धान्तों पर आधारित है। संगीत, नृत्य, चित्र ,नाट्य आदि कलाओं का समवेत रूप जयदेव के गीतों में देखने को मिलता है। जयदेव अपनी अद्भुत छंद साधना के ही कारण लोकविश्रुत हुए।गीतगोविन्द में शार्दूलविक्रीडित,वसंततिलका जैसे गणबद्ध छंदो का प्रयोग किया गया है तो दूसरी ऒर गीतिका ,हरगीतिका जैसे मात्रिक छंदों का भी समुचित प्रयोग किया गया है।
संस्कृत कविता में जयदेव अपने समय के युगप्रवर्तक कवि माने जाते हैं। जयदेव के छंदों में वह अद्भुत क्षमता थी कि नाट्यशास्त्र के आचार्यों ने गीतगोविन्द को रूपक काव्य कहा,संगीत के आचार्यों ने गीतगोविन्द को संगीत कला का महान काव्य कहा, काव्यशास्त्रियों ने गीतगोविन्द को महान गीतिकाव्य स्वीकार किया ही है। कही न कही हिन्दी भक्तिकाल की पदावली और भजन शैली पर गीतगोविन्द का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है।सचमुच छंदप्रसंग की दृष्टि से जयदेव का गीतगोविन्द एक आदर्श काव्यग्रन्थ है।