सोमवार, मई 14, 2018




समीक्षा -
"पठार पर रंगोली"
# भारतेंदु मिश्र 

नवगीत की सर्जना में कवयित्रियों के नाम बहुत कम हैं, फिर भी शान्ति सुमन,राजकुमारी रश्मि,इंदिरा मोहन,शरद सिंह ,पूर्णिमा वर्मन,रजनी मोरवाल,यशोधरा राठौर जैसी नवगीत कवयित्रियाँ हमारा ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं|इसी नवगीत की परंपरा में कुछ दिनों से मालिनी गौतम के नाम की भी चर्चा हो रही है|‘चिल्लर सरीखे दिन’ मालिनी गौतम के नवगीतों की पहली पुस्तक है|इसमें 55 गीत नवगीत संकलित हैं,जिनमें अधिकाँश गीत भाषा और छंद की दृष्टि से निर्दोष हैं|जीवन में हम सबको छोटी छोटी खुशियों की ही तलाश रहती है|कवयित्री मालिनी गौतम को घर में ही कविता का सार्थक संस्कार अपने पिता से मिला जो आज उनकी काव्य भाषा और रूपकों में देखा जा सकता है|यू तो मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरती पर नवगीत जितना फला फूला और उसकी समझ विक्सित हुई उतना किसी अन्य प्रदेश में संभव नहीं हो पाया|संयोगवश मालिनी जी को इसी मध्यप्रदेश की मोहक सांस्कृतिक छवियों वाली काव्य भूमि विरासत में मिली|अपनी जिज्ञासा और पढाई लिखाई के परिश्रम से कवयित्री ने अपनी काव्य अनुभूतियों को मांजा और बेहतरीन ढंग से चमकाया है|ये नवगीत मालिनी गौतम की सजग काव्य चेतना का प्रकटीकरण हैं|वे कविता की अनेक विधाओं में लिखती हैं|
आज इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में जब मनुष्य संवेदना की बात लगभग बेमानी हो गयी है तब मालिनी गौतम अपनी सशक्त नवगीत सर्जना से नवगीत प्रेमियों को न केवल आश्वस्त करती हैं बल्कि किसी हद तक चकित भी करती हैं| संयोगवश संकलन के अंतिम गीत पर मेरी नजर पहले पडी,फिर सभी गीत पढ़ने का मन बनाता गया|अन्तिम गीत  का अंश देखिये-
झूठ दौड़ता पहन जूतियाँ /अफवाहों की
बातें करती कानाफूसी/घर घर जाकर
छल की भाषा शोर मचाती /मौक़ा पाकर
भटक रहीं हैं आवाजें /सच की आहों की|(पृ-96)
ये जो अफवाहों की जूतियाँ कवयित्री ने झूठ को पहना दी हैं असल में यही नवगीत की अंतर्चेतना है| एक शब्द या एक रूपक के निर्वाह भर से ही कविता में जो अर्थ की छवि उद्भासित होती है वही रचनाकार की शक्ति का पता बता देती है|ऐसे अनेक नवगीत इस संकलन में दिखाई देते हैं जिनमें नई सदी की कविता का मुहावरा धड़कता है|ये नवगीत छंद और लय की दृष्टि से भी प्रवाह संपन्न हैं| संकलन के शीर्षक नवगीत का अंश देखिये-
हाँथ में हैं शेष /कुछ चिल्लर सरीखे दिन
हडबडाती जिन्दगी/इक रेल सी गुज़री
चाहतों के स्टेशनों पर/चार पल ठहरी
उम्र के खाली कपों में /घूँट से पल-छिन |(पृ-11)
असल में जिन्दगी का फलसफा कवयित्री को बखूबी मालूम है और वह हडबडाते समय को धैर्य पूर्वक सहज मन से जी लेने के लिए तत्पर भी है| यह तत्परता ही उसे नास्टेल्जिक होने से बचाती है| प्राय: जो अतीत का रोना लेकर गीत लिखे जाते हैं उनसे कवयित्री का स्वर कदाचित भिन्न है| कवयित्री कविता में यथास्थिति तक सीमित होकर नहीं रह जाती बल्कि वह अपने सामर्थ्य और समझ से समाधान और उपाय भी बताती है-
‘वक्त कबसे कैद है /कब तलक सोओगे तुम/अब उठो घंटा बजाओ|’(पृ-16)
इसी क्रूर समय में हमारे जीवन की दुर्दशा हमारे ही कुछ ठग साथी कर रहे हैं |हमारे जीवन की सहज गति को रोकने के लिए वे कीलें बिखरा कर हमारे पहियों में पंक्चर करने से भी बाज नहीं आते|फिर भी संवेदना का घाव लिए हुए मनुष्य अनंत की यात्रा पर बढ़ता जा रहा है|कवयित्री मालिनी गौतम के पास जीवन और जगत के यथार्थ को अभिव्यक्त करने की सटीक भाषा संवेदना भी है|नवगीत का एक अंश देखें-
खुरच खुरच कर खोद रहा है/वक्त हमारे घाव/
यहाँ वहाँ बिखरी कीलों ने /पंक्चर किये तमाम
कैसे घूमे पहिया कोई /लगे जाम पर जाम
सिग्नल सारे टूटे जब जब /उनपर बढ़ा दबाव|(पृ-34 )
कवयित्री के मन में खेतिहर किसान की समस्याओं के स्वर भी घुमड़ते हैं,इसलिए वह धरती और बादल के बिम्ब लेकर संबंधो की खेती करने का सहज प्रयास करती है-
ऊसर धरती पर /चाहत के बीज उगा दूं
एक उदासी/ खाट डालकर कब से सोयी
खाली कोनों में /खुशियों की चिड़िया रोयी
खालीपन को झाड़ पोंछकर/आज सजा दूं|(पृ-82)
सहज कविता तो जीवन और जगत के प्रेम से ही निकलती है|मालिनी जी के इन नवगीतों का सौन्दर्य  इनकी लोक धर्मी चेतना से पथरीले यथार्थ की जमीन पर अल्पना सजाने जैसा है| ये पठार पर रची गयी रंगोली जैसे आकर्षक हैं| जिनके मन की अटारी खाली हो वह उसे भरने की कोशिश अवश्य करता है|प्रेम की झीनी चदरिया बुनने की कोशिशें करने वाले सजग रचनाकार ही मनुष्यता को भटकाव से बचा सकते हैं|किसी बड़े आलाप- विलाप, पक्ष -विपक्ष के बिना, सहज ढंग से रचे गए मालिनी गौतम के ये नवगीत नई सदी की नवगीत सर्जना का नया प्रस्थान बिंदु प्रतीत होते हैं|अंतत: कवयित्री के इस पहले नवगीत संग्रह का मैं हृदय  से स्वागत करता हूँ| बोधि प्रकाशन को भी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई|
शीर्षक:चिल्लर सरीखे दिन/कवयित्री: मालिनी गौतम/प्रकाशन: बोधि प्रकाशन,जयपुर/मूल्य:100/वर्ष:2017
संपर्क:
भारतेंदु मिश्र
सी-45/वाई-4 ,दिलशाद गार्डन,दिल्ली-11 00 95