बुधवार, अप्रैल 14, 2010

अशोक पाण्डेय अशोक की षष्ठिपूर्ति

छन्द प्रसंग के अप्रतिम हस्ताक्षर अशोक पाण्डेय अशोक छन्दविधा के आचार्य कवि हैं। उन्हे छन्दविधा की यह अप्रतिम कला अपने पिता स्व.गोमती प्रसाद पाण्डेय कुमुदेश से संस्कार रूप में प्राप्त हुए।मैने ही नही लखनऊ और आसपास के नमालूम कितने नए पुराने छन्दोबद्ध कवियों ने अशोक जी से छन्द की बारीकियाँ ,शब्द मैत्री और पारम्परिक भारतीय हिन्दी कविता के स्वरूप को जाना समझा है । वे जितने कुशल कवि हैं उतने ही सहज व्यक्ति भी हैं। संयोग देखिये कि वे चार भाई हैं –अशोक पाण्डेय,विजय पाण्डेय,महेश पाण्डेय और शरद पाण्डेय और सभी छन्दविधा में कविताई करते हैं। अशोक पाण्डेय अशोक के महत्व के विषय मे विद्वानों ने इस प्रकार राय दी है-

1.अशोक कुमार पाण्डेय ने कवित्त,सवैया के माध्यम को इतना सहज,अनलंकृत और आकर्षक बना दिया है कि उनकी रचनाओं से बासीपन नही बल्कि स्वाभाविक मिठास और टकटकेपन की अनुभूति होती है। *डाँ.शम्भुनाथ सिंह

2.अलंकारों के प्रयोग से छन्दोबद्ध शैली में रची गई कविता के निसर्ग सम्भव सौन्दर्य में और भी अधिक लालित्य का समावेश हो उठता है। पाण्डेय जी के ये सभी छंद अलंकॆत शैली में रचे गये हैं।उन्होने अपनी कविता में अलंकारों का प्रयोग साध्य रूप में न करके साधन रूप में ही किया है। *देवेन्द्र शर्मा इन्द्र
प्रभात के दो छन्द:
चाव से सजाये अंग अंग में वसुन्धरा ने,
पाये मोतियों के हार रजनी नवेली से।
स्नेह का पराग बिखराता झूम झूम कंज,
गान सुनता है अलिपंक्ति अलबेली से।
ऐसा मधु योग हुआ हो गये सरों के वृन्द,
हेम-रंग-रंजित उषा की रंगरेली से।
निकल गया है तम तोम जग-मन्दिर से,
फिसल गया है चन्द्र व्योम की हथेली से। 1।
खोया रूप रैन –श्रम-सीकरों ने अम्बर में,
संयमी द्विजों का दल वेद -मंत्र बोला है।
प्रेम से सुलाता नलिनी को थाप दे समीर,
रश्मियों ने सकल सरों में स्वर्ण घोला है।
मंद-मंद आये रवि जावक लगाये भाल,
देख मधु योग अलियों का मन डोला है।
मार हेतु मात ले बिता के प्रिय संग रात,
प्रात में संयोगिनी उषा ने द्वार खोला है।
(*व्योम की हथेली से)
मैं आज उन्हे युवा रचनाकार मंच,लखनऊ के पहले अध्यक्ष के रूप में याद करते हुए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ। आज भी उन्हे छन्दोबद्ध कवि अंशुमालिनी और ब्रजकुमुदेश जैसी पारम्परिक छन्दोबद्ध पत्रिकाओं के सम्पादक के रूप में जानते मानते हैं।10 मार्च 2010 को उन्होने अपनी आयु के साठ वर्ष पूर्ण किये,ईश्वर उन्हे दीर्घायु करे।