बुधवार, दिसंबर 05, 2018



'मानो पहली बार मिला हूँ '  # भारतेंदु मिश्र 

विज्ञान व्रत 

   'तुमसे जितनी बार मिला हूँ/पहली पहली बार मिला हूँ|'हिन्दी ग़ज़ल की दुनिया में ख़ास तौर पर  छोटी बहर में अपनी मुकम्मल बात कहने वाले मशहूर कवि/शायर  अग्रज विज्ञान व्रत की कुछ ग़जलें दोस्तों के लिए पेश कर रहा हूँ| विज्ञान व्रत जी के अब  तक प्रकाशित 'ग़ज़ल संग्रह' सात हैं। सात संग्रहों में चार संग्रहों के चार संस्करण और एक संग्रह के दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।उनकी गजलों में जिस तरह छोटी छोटी दिल को सुकून देने वाली कारीगरी के नक्श उभरते हैं, तकरीबन उसी तरह के नक्श उनकी चित्रकारी में  भी बहुत दिलकश अंदाज से चमकते हुए हमारा दिल और दिमाग अपनी ओर खींच लेते हैं| छोटे छोटे कैनवास पर उनकी तूलिका रंगों से खेलती है तो यह कहना कठिन हो जाता है कि वे शायर बड़े हैं या चित्रकार बड़े हैं| शब्दों को मितव्ययिता  से और रंगों को जिस संयोजन की वास्तविकता से विज्ञान जी प्रस्तुत करते हैं वह काबिले तारीफ़ है| दोस्तों के लिए चुनी हुई  कुछ उनकी ग़ज़लें  उनसे किये गए सवालों के जवाबों और  उनकी पेंटिंग्स के साथ पेश हैं| उनकी किताबें क्रमश:-1   "बाहर धूप खड़ी है "  2   "चुप की आवाज़ "  3  " जैसे कोई लौटेगा 4   "तब तक हूँ 5   " मैं जहाँ हूँ 6   " लेकिन ग़ायब रौशनदान "    7   " याद आना चाहता हूँ " 8 " खिड़की भर आकाश "-(दोहा संग्रह),प्रकाश्य-नवगीत संग्रह - " नेपथ्यों में कोलाहल " और  "इल्ली-गिल्ली,अक्कड़-बक्कड़" :(बाल कवितायेँ ) हैं|

   सवाल जवाब-


भारतेन्दु मिश्र : छोटी बहर की ग़ज़ल का मतलअ और इतनी छोटी बहर की ग़ज़ल कहने का सिलसिला कैसे शुरू हुआ ?

विज्ञान व्रत: 70 के दशक के अंतिम वर्ष की बात है - शायद फ़रवरी का महीना था मैं सिविल लाइंस दिल्ली में एक दूकान पर पान लेने का इन्तज़ार कर रहा था कि एक पंक्ति दिमाग़ में कौंधी ----
    "सब कुछ एक - बराबर है " ......
उसी क्षण दूसरा मिसरा भी हो गया ! ....
    "कितना झूठ  सरासर है "  
बस क्या था ! मैं पान-वान खाना भूल कर घर की तरफ़ भागा ....
रास्ते में ही ग़ज़ल हो गयी ! घर पहुँच कर वो सारी 'ग़ज़लें' फाड़ कर फेंकीं जो मैं तीन - चार  वर्षों से गोष्ठियों में पढ़कर तथाकथित 'वाहवाही' बटोर रहा था।
हाँ ! तो उस पहली ग़ज़ल का मतलअ यों हुआ -----
       " सब कुछ एक - बराबर है 
         कितना  झूठ   सरासर  है " 
इसके बाद तो सब कुछ आपके समक्ष है ही।

भारतेन्दु मिश्र : सुना है आप नवगीत लिखने की ओर अग्रसर हो गये हैं !

विज्ञान व्रत : जी! नवगीत लिखने की ओर अग्रसर अब नहीं हुआ हूँ,
ग़ज़लों से पहले गीत ही लिखे और लगभग 40-45 , सभी प्रेमगीत थे ! गोष्ठियों में कुछ सुनाये भी और ' श्रोताओं ' ने 
ताली-वाली भी बजायी लेकिन मैंने महसूस किया कि जो मैं कहना चाहता हूँ वह इन गीतों में नहीं है ! इसी वक़्त कुछ ऐसा हुआ कि ग़ज़लों ने मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया। वैसे ग़ज़लों के साथ-साथ मैं छिटपुट गीत भी लिखता रहा लेकिन अब इन गीतों का 'रंग' कुछ और था ! एक ख़ास बात -- इसके बाद मैंने स्वयम् को कभी गीतकार के रूप में प्रस्तुत नहीं किया और पिछले क़रीब 40 वर्षों में जो गीत ख़ामोशी से काग़ज़ों पर उतरते रहे उन्हीं गीतों का संकलन अब "नेपथ्यों में कोलाहल " के नाम से आ रहा है।


भारतेन्दु मिश्र : दोहों में आपको बेहतरीन सफलता मिली थी फिर दोहों की राह पर आगे क्यों नहीं बढ़े ? शायद तसल्ली नहीं मिली अपने को मुकम्मल तौर पर कह लेने की !

विज्ञान व्रत : मिश्र जी ! दोहे एक झटके में हो गये थे, अनायास !
वैसे मैंने कभी भी  कोई रचनात्मक कार्य सायास किया भी नहीं।
क़रीब तीन सौ दोहे चार-पाँच दिन में ही हो गये ! आदरणीय 'इन्द्र' जी का आदेश हुआ कि मेरे दोहों का संकलन आना चाहिए वैसे इसके पूर्व आदरणीय प्रो देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र' जी द्वारा सम्पादित "सप्तपदी" 6th
में मेरे 101 दोहे संकलित हो चुके थे।  इस तरह 'इन्द्र' के कहने पर मेरा पहला दोहा संकलन "खिड़की भर आकाश" का प्रथम संस्करण 2006 में आया और अब तक इसके चार संस्करण आ चुके हैं !


भारतेन्दु मिश्र : कला की दुनिया में विज्ञान का क्या स्थान है ?

विज्ञान व्रत : कला यानी चित्रकला। जहाँ तक तकनीकी पक्ष का प्रश्न है तो चित्रकला पूर्णत: वैज्ञानिक है लेकिन कल्पना का भी इसमें एक महत्वपूर्ण स्थान है। हाँ यदि 'विज्ञान' का तात्पर्य मेरे नाम से है तो अपने बारे में कुछ भी कहना आत्मश्लाघा होगी लेकिन आपने पूछा है तो इतना कहूँगा कि मेरी कलाकृतियों की 39 एकल - प्रदर्शनियाँ 
देश-विदेश की महत्वपूर्ण कलादीर्घाओं में प्रदर्शित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त देश की सर्वोच्च और प्रतिष्ठित कला अकादमियों में मेरे चित्र प्रदर्शित हो चुके हैं। देश-विदेश के लगभग 25 कलाशिविरों में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है। राष्ट्रपति भवन ,  देश की महत्वपूर्ण कलाअकादमियों और देश-विदेश के व्यक्तिगत संग्रहों में मेरे शताधिक चित्र संग्रहीत हैं। और भी काफ़ी कुछ है.......


भारतेन्दु मिश्र : कैनवस और रंग किस तरह के इस्तेमाल करते हैं ?

विज्ञान व्रत : पेन्सिल , काग़ज़ , कैनवस , रंग ( Water colours ,
Oil colours और Acrylic colours ) यानी कला सामग्री के लिये मुझे कभी कोई समझौता नहीं करना पड़ा सदा सर्वश्रेष्ठ सामग्री प्रयोग की।


भारतेन्दु मिश्र : आपकी paintings की प्रदर्शनियाँ कई देशों में लगायी जा चुकी हैं , पुरस्कार आदि भी मिले होंगे। कला अध्यापक के भीतर से यह कलावंत कवि और चित्रकार कब और कैसे 
निकला ?

विज्ञान व्रत : जी ! जैसा मैं पहले कह चुका हूँ -- इटली, फ़्रांस, जर्मनी,  नीदरलैंड, इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड, मॉरिशस, सिंगापुर, भूटान आदि देशों में मेरी एकल और समूह प्रदर्शनियाँ लग चुकी हैं। जहाँ तक पुरस्कारों का सम्बन्ध है तो मुझे उत्तर प्रदेश की "ललित कला अकादमी" और पंजाब की "Indian Academy of Fine Arts" अमृतसर ने मुझे कई बार पुरस्कृत और सम्मानित किया है। 
भारत के सांस्कृतिक मंत्रालय ने "Senior Fellowship" से सम्मानित किया है। यह Fellowship चित्रकला क्षेत्र के लिये थी।
साहित्यिक योगदान के लिये मुझे लंदन में "वातायन सम्मान" से नवाज़ा गया , सहारनपुर में "समन्वय सम्मान",
गुरुग्राम में "सुरुचि सम्मान", नाथद्वारा में "साहित्य मण्डल सम्मान",
पंचकुला में "ताज-ए-हिन्दुस्तान", माॅरिशस और सिंगापुर में कई सम्मानों से सम्मानित किया गया।
अब आपका दूसरा प्रश्न -- मिश्र जी !  यह चित्रकार और कवि दोनों  मुझमें बचपन से ही विद्यमान हैं। मुझे याद है वह तस्वीर जो मैंने पहली या दूसरी कक्षा में बनायी थी। तीसरी-चौथी कक्षा में मुझे  स्कूल में  होने वाले कवि-सम्मेलनों को सुनने का चस्का लग गया था। सातवीं-आठवीं कक्षा में ठीक-ठाक तुकबन्दी कर लिया करता था।
उस समय मेरी कविताएँ व्यंग्यात्मक होती थीं जिनके लिये मुझे कई बार डाँट-फटकार और मार भी पड़ी !


भारतेन्दु मिश्र : इन दिनों क्या कर रहे हैं ? सम्मान और यश ख़रीदने वाले लुटेरों और लंपटों से भरी इस दुनिया में कला और कविकर्म से सन्तुष्ट हैं ?

विज्ञान व्रत : आजकल निरन्तर लिख रहा हूँ। 
आने वाले विश्व पुस्तक मेले में मेरी चार पुस्तकें आने वाली हैं ---
दो ग़ज़ल संग्रह, एक नवगीत संग्रह और एक बालगीत संग्रह।
Paintings भी करता रहता हूँ , sketches तो लगभग प्रतिदिन करता हूँ। एक ग़ज़ल संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशन के लिये तैयार हैं। एक उपन्यास पर कार्य चल रहा है। बीच-बीच में भूमिकाएँ और समीक्षाएँ भी लिखता रहता हूँ।
यश तो किसी के द्वारा किये गये कार्य का प्रतिफल है। पाठकों से जो प्यार मिला उससे आश्वस्त हूँ। कला के क्षेत्र में और लेखन के क्षेत्र में जो भी सम्मान प्राप्त हुए वे सभी स्वयमेव मिले। मैंने कभी भी कोई जुगाड़ न किया है और न कभी करूँगा।
अपनी चित्रकला और कविकर्म से मैं पूर्णतया संतुष्ट हूँ लेकिन  हर चित्र के बाद और साहित्यिक रचना के पश्चात प्रतीत होता है कि अभी श्रेष्ठतर होना है !

      ----
       
कुछ ग़ज़लें
 1.

जब   उन्हें   महसूसता   हूँ
रब   उन्हें    महसूसता   हूँ

मैं  रहा  अहसास  जिनका 
अब   उन्हें   महसूसता   हूँ

अब किसी को क्या बताऊँ
कब   उन्हें   महसूसता   हूँ

आज  जो हस्सास हूँ  कुछ 
तब   उन्हें   महसूसता   हूँ

आज  अपनी  ज़िंदगी का 
ढब   उन्हें   महसूसता  हूँ

   2.            

या  तो  मुझसे  यारी  रख
या  फिर  दुनियादारी रख

जीने   की    तैयारी   रख
मौत से  लड़ना जारी रख

ख़ुद  पर   पहरेदारी  रख
अपनी     दावेदारी    रख

लहजे  में   गुलबारी  रख
लफ़्ज़ों  में   चिंगारी  रख

जिससे  तू  लाचार न  हो
इक   ऐसी  लाचारी  रख
    3.

आपका   आलम    रहा    हूँ
इक  मुजस्सम   ग़म  रहा  हूँ

कब  किसी  से  कम  रहा हूँ
आपका   परचम    रहा    हूँ

आप   भी   मुझमें    रहे   हो
और  यूँ   मैं   'हम'    रहा  हूँ

आप  तो   पहचान   लें    ना
आपका    मौसम   रहा    हूँ

क़द मेरा भी कम न था कुछ 
एहतरामन   ख़म    रहा   हूँ


4.

जुगनू   ही     दीवाने    निकले 
अँधियारा    झुठलाने    निकले 

ऊँचे    लोग    सयाने    निकले 
महलों   में    तहख़ाने   निकले 

वो तो  सबकी  ही  ज़द  में  था
किसके  ठीक  निशाने  निकले 

आहों   का   अंदाज़   नया  था 
लेकिन   ज़ख़्म  पुराने  निकले 

जिनको पकड़ा हाथ समझ कर 
वो     केवल    दस्ताने   निकले 

       5.

सुन  लो   जो   सय्याद   करेगा 
वो    मुझको   आज़ाद   करेगा 

आँखों   ने   ही  कह  डाला  है 
तू   जो   कुछ   इरशाद  करेगा 

एक   ज़माना   भूला    मुझको
एक    ज़माना     याद    करेगा 

काम  अभी   कुछ  ऐसे  भी  हैं
जो   तू   अपने    बाद    करेगा 

तुझको  बिल्कुल  भूल  गया  हूँ
जा   तू   भी  क्या  याद   करेगा



 6.

क्या   बनाऊँ    आशियाँ
कम   पड़ेगा   ये    जहाँ

बिजलियाँ ही बिजलियाँ
और    मेरा    घर    यहाँ

एक  थे     हम   दो  यहाँ
कौन    आया     दरमियाँ

ढूँढ़ते   हो    क्यों    निशाँ
वो   ज़माने    अब   कहाँ

था   जहाँ   से   वो   बयाँ
अब   नहीं   हूँ    मैं   वहाँ

         7.
जो   सदा  से   लामकाँ   है 
वो   मुझे   रखता  कहाँ   है 

ख़ुद   नहीं  महफ़ूज़  है  जो
क्यों    हमारा   पासबाँ    है 

तू  अगर  मंज़िल   नहीं  तो
फिर   मुझे  जाना  कहाँ  है

मिल  चुका  हूँ  आपसे  पर
आपको    देखा    कहाँ   है 

आप   बोलें   या    न   बोलें
आपका    चेहरा    बयाँ    है


   8.
मुस्कुराना     चाहता     हूँ
क्या  दिखाना   चाहता  हूँ

याद  उनको  भी  नहीं  जो
वो    भुलाना    चाहता   हूँ 

जिस मकाँ में  हूँ  उसे  अब 
घर   बनाना    चाहता     हूँ

क़र्ज़  जो  मुझ  पर नहीं  है
क्यों   चुकाना   चाहता   हूँ

आपकी जानिब से ख़ुद को
आज़माना      चाहता     हूँ

  9.

कुछ  नायाब  ख़ज़ाने  रख 
ले    मेरे    अफ़साने    रख 

जिनका   तू   दीवाना    हो 
ऐसे     कुछ    दीवाने   रख 

आख़िर  अपने   घर  में  तो 
अपने    ठौर - ठिकाने   रख 

मुझसे   मिलने - जुलने   को 
अपने   पास   बहाने     रख 

वरना   गुम    हो     जाएगा 
ख़ुद को  ठीक-ठिकाने  रख



10.
घर  तो   इतना  आलीशान 
लेकिन   ग़ायब   रौशनदान 

जब घर में हों सब मेहमान
कौन करे  किसका सम्मान 

बढ़ता   जाता   है   सामान
छोटा    होता   घर- दालान 

घर  है  रिश्तों  से  अनजान 
अपने  घर  में   हूँ   मेहमान 

सारी  बस्ती   एक - समान
किसके घर की  है पहचान 

   11.                

चेहरे   पर    मुस्कान     रखूँ
क्यूँ   फ़ानी    पहचान    रखूँ

जो    तेरा     अरमान     रखूँ
ऐसी    क्या    पहचान    रखूँ 

पहचानूँ    इस    दुनिया   को 
पर   ख़ुद  को   अंजान   रखूँ

खो    जाऊँ     पहचानों     में
क्यूँ    इतनी    पहचान    रखूँ

मैं   हूँ ,   मन है ,   दुनिया   भी 
अब  किस-किसका ध्यान रखूँ

12.










जुगनू   ही     दीवाने    निकले 
अँधियारा    झुठलाने    निकले 

ऊँचे    लोग    सयाने    निकले 
महलों   में    तहख़ाने   निकले 

वो तो  सबकी  ही  ज़द  में  था
किसके  ठीक  निशाने  निकले 

आहों   का   अंदाज़   नया  था 
लेकिन   ज़ख़्म  पुराने  निकले 

जिनको पकड़ा हाथ समझ कर 
वो     केवल    दस्ताने   निकले 

                13.

सुन  लो   जो   सय्याद   करेगा 
वो    मुझको   आज़ाद   करेगा 

आँखों   ने   ही  कह  डाला  है 
तू   जो   कुछ   इरशाद  करेगा 

एक   ज़माना   भूला    मुझको
एक    ज़माना     याद    करेगा 

काम  अभी   कुछ  ऐसे  भी  हैं
जो   तू   अपने    बाद    करेगा 

तुझको  बिल्कुल  भूल  गया  हूँ
जा   तू   भी  क्या  याद   करेगा
*******************************************
प्रस्तुति : भारतेंदु मिश्र 


          

1 टिप्पणी:

  1. फेसबुक चर्चा-
    पुष्पेन्द्र फाल्गुन आपके ब्लॉग पर पहली बार ही जाना हुआ... लिंक सहेज लिया है... बहुत कुछ पठनीय है वहाँ ... 💐
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    Mahesh Katare Sugam
    Mahesh Katare Sugam SADAR PRANAM AADARNIY
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    Kumar Ravindra
    Kumar Ravindra भारतेन्दु भाई, आपके ब्लॉग का स्वागत। भाई विज्ञान व्रत की ग़ज़लगोई का, उनकी चित्रकला से मैं परिचित रहा हूँ। उनकी इन दोनों अभिनन्दनीय विशिष्टताओं से रूबरू होने का जो सुयोग मिला, उसके लिए मैं आपका अतिरिक्त आभारी हूँ। भाई विज्ञान व्रत आधुनिक हिन्दी कविता एवं कलाक्षेत्र के भी निश्चित ही एक अमूल्य निधि हैं। उनकी अनूठी प्रतिभा को मेरा विनम्र नमन।
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    Ashok Rawat
    Ashok Rawat 👍👍🌻🌻🌻🌻⚜⚜🌹🌹🌹🌹
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    Haripal Tyagi
    Haripal Tyagi विज्ञानव्रत कितना प्यारा ,कितना सहृदय और कितना खुला - खिला
    इनसान है-- देखते ही मन ऊर्जा से भर जाता है ।
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    Yogendra Datt Sharma
    Yogendra Datt Sharma विज्ञानव्रत ग़ज़ल और चित्रकला दोनों में अनूठे हैं।
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    Bhartendu Mishra
    Bhartendu Mishra आप सब की टिप्पणियों के लिए आभार।
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    कल्पना मनोरमा
    कल्पना मनोरमा बधाई आप दोनों को
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