शुक्रवार, नवंबर 10, 2017

कुमुदेश जी की स्मृति को प्रणाम
#:भारतेंदु मिश्र

प्रसिद्ध छंदकार अग्रज अशोक कुमार पाण्डेय अशोक जी लखनऊ के शताधिक छंदोबद्ध कवियों के काव्य गुरु हैं | हिन्दी खड़ीबोली में घनाक्षरी का जैसा सुन्दर प्रयोग वे करते हैं वैसा कम ही आधुनिक कवियों की कविताई में देखने को मिलता है|पिछली लखनऊ यात्रा में उन्होंने अपने पिताश्री स्व.गोमती प्रसाद पाण्डेय कुमुदेश जी की रचनावली भेंट की ये पुस्तक अनेक कारणों से मेरे लिए संग्रहणीय है|कुमुदेश जी के सभी चारों पुत्र क्रमश:अशोक कुमार पाण्डेय,विजय कुमार पाण्डेय,महेश कुमार पाण्डेय और शरद कुमार पाण्डेय सभी छंदोबद्ध कविता के कौशल से संपन्न सुकवि तो हैं ही,मेरी युवावस्था के मित्र और सहचर भी रहे हैं|युवारचनाकार मंच की सभी गतिविधियों में इन सभी की भागीदारी होती थी|मुझे इस कवि परिवार से भाई आवारा नवीन जी ने ही जोड़ा था|बहरहाल ये रचनावली हिन्दी छंद विधा के रचनाकारों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज है|इसमें कविवर कुमुदेश जी की सभी पांच कृतियों-कुमुदावाली,तुलसी रत्नावली,मालती,वनमाला और जाग्रति को समाविष्ट किया गया है|उनका जन्म 15 नवंबर 19 23 को हुआ और मात्र 55 वर्ष की अवस्था में ही 7 सितम्बर 19 78 को उनका देहांत हो गया|वे निशंक जी के अत्यंत प्रिय कवि थे|सुकवि,साप्ताहिक हिन्दुस्तान,धर्मयुग,स्वतन्त्र भारत आदि में लगातार उनके कवित्त प्रकाशित होते थे| जब एक और छंदहीनता और मुक्तछंद कविता की वकालत की जा रही थी तब कुमुदेश जैसे कवियों ने ही छंदोबद्ध कविता की आंच को सुरक्षित रखा|निशंक जी उनके बारे में लिखते हैं-'कुमुदेश जी के सवैये बड़े मार्मिक और चुटीले हैं |वे ब्रजभाषा एवं खड़ीबोली दोनों में ही कवित्त घनाक्षरी और सवैया छंद लिखने में सिद्ध हस्त थे|'सनेही,हितैषी जी की परंपरा में लोग आज भी उन्हें याद करते हैं| मित्रो के लिए उनकी अंतिम कविता इस प्रकार है-
चोट जब भी लगी खा के गम रह गये
झेलते नित सितम पर सितम रह गये
लोग जाने कहाँ से कहाँ बढ़ गए
और हम देखते अधिनियम रह गये |
इन्ही शब्दों के साथ उनकी स्मृति को प्रणाम|

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