सोमवार, मार्च 21, 2016


नवगीत की आत्मा और पूर्णिमा जी के ज्वलंत प्रश्न

जन का अर्थ है सामान्य मनुष्य-नवगीत मे सामान्य मनुष्य की पीडा और उसके सरोकारो की बात होती है।उस सर्वहारा की संवेदना/संघर्ष कथा/व्यंजना आदि।जन का विलोम है अभिजन।जन की पक्षधरता ही नवगीत की आत्मा है।हमारे मंचीय गीतकारो का समाज अभिजन की सेवा मे लगातार लगा रहा उन्हे ही खुश करता रहा है।उनका कीर्ति गायन नवगीत का लक्ष्य कभी नही रहा।दुनिया भर मे आज भी हाथ का काम करने वाले लोगो की संख्या अधिक है।उन्हे अनुशासित करने वाले लोगो की संख्या कम है।किसान /मज्दूर/कामकाजी महिलाए/सुरक्षाकर्मी/नर्स/इन छोटे छोटे कार्यो से जीवन निर्वाह करने वाले लोगो से 'जन' निर्मित होता है इनके पक्ष मे खडे होना ही नवगीत का अभिप्रेत रहा है।असल मे वही हमारी परंपरा है।महात्मा गान्धी ने क्यो आधी धोती ओढकर पूरी दुनिया को अपनी जनवादी लाठी से अपने सिद्धांतो का लोहा मनवाया।नेल्सन मंडेला ने कैसे जन के पक्ष मे लडकर जेल से संघर्ष करते हुए सत्ता को पराजित किया फिर नई व्यवस्था लागू की।अपने स्वार्थ के लिए सत्ता के पक्ष मे खडे होकर हम सत्ता के दलाल बन जाते हैं।इसीलिए दरबारी कवियो को इतिहास मे कभी सम्मान की दृष्टि से नही देखा गया।मंचीय गीतकार अक्सर मौका देखकर उत्सवधर्मी रचनाए लेकर ताली पिटवाते रहे।वह नवगीत का रास्ता नही है।जनपक्ष के लिए व्यापारिक घरानो/राजनीतिक दलालो/सत्ता के सहयोगियो/धार्मिक भक्तजनो -मौलवियों -पादरियों से अलग सोचवाले लोगो पर तटस्थ होकर विचार करना आवश्यक है।ऐसे लोग बहुत कम है जो धर्म की सत्ता चलाते है/जो राजनीति की सत्ता संभालते है/व्यापारिक जगत पर राज करते हैं।नवगीत उनके विपक्ष मे संघर्ष करने वाले आम जन के पक्ष मे खडा होता है।
पूर्णिमा वर्मन-इसका अर्थ क्या यह समझना चाहिये कि
1. अगर कोई रचना अभिजात वर्ग के विषय में, उनकी मनोदशा के विषय में, उनकी सोच के विषय में लिखी, अभिजात वर्ग के द्वारा लिखी जाती हैं तो वे नवगीत नहीं हैं।
2. उत्सवधर्मी रचनाएँ नवगीत नहीं है।
3. नवगीत व्यापारिक घरानों, राजनीतिक तंत्र, सत्ताधारियों, व्यापारियों का विरोधी है।
4. नवगीत धर्म, सत्ता और राजनीति का तख्ता पलटने के लिये लिखी गई कविता है।
5. किसी देवता या मनुष्य के प्रति लिखा गया गीत नवगीत नहीं है।
6. अभिजात वर्ग की उपस्थिति से गीत नवगीत की जाति से बाहर हो जाएगा।
7. उत्सवों और पर्वों पर लिखे गए गीत नवगीत से बाहर हैं।
8. और अब मुझे यह भी समझ में आ रहा है कि होली दीवाली पर लिखे गये गीत नवगीत नहीं हो सकते हैं सिर्फ ईद पर लिखे गए गीत नवगीत हो सकते हैं जैसा कि नवगीत महोत्सव में भारतेन्दु जी ने इशारा भी किया था....
LikeReply19 March at 10:32Edited
Bhartendu Mishra जी हां नवगीत दरबारी कविता का मार्ग नही है।वह केवल होली दीपावली और दुर्गा पूजा का गीत नही है।वह विजय माल्या की प्रशंसा का स्वर नही है।वह किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की वन्दना नही है।वह राम और कृष्ण की स्तुति भी नही है।वह बहुजन समाज(बसपा वाला नही) का पक्षधर है।ये व्यापारिक प्रतिष्ठान वाले,सत्ताधारी और धर्म की राजनीति करने वाले बहुत थोडे से हैं ।लेकिन ये पैसा खर्चकरके कुछ भी लिखवा सकते हैं।अभिजन को बहुसंख्यक मानवीय मूल्यो को समझना होगा और साबित करना होगा कि वे व्यापक मनुष्यता के पक्ष मे खडे हैं,सभी धर्मो के साथ हैं,तभी वे नवगीत की आत्मा को समझ सकते हैं ।

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