शनिवार, दिसंबर 26, 2015

डीयर पार्क बतकही मंडल
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रपट











नवगीत विमर्श संगोष्ठी
दिनांक24-12-2015,वरिष्ठायन,राजेन्द्र नगर गाजियाबाद मे “सम्प्रति” साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था के तत्वावधान मे डा.भारतेन्दु मिश्र के गीत/नवगीत संग्रह-अनुभव की सीढी-पर चर्चा की गयी।अनुभव की सीढी भारतेन्दु मिश्र के 30 वर्षो मे लिखे गये समग्र गीतो का संग्रह है जिसका संपादन डा.रशमिशील ने किया है।विमर्श मे नवगीत और समग्र नई कविता पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डा.विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा-‘छन्दोबद्ध कविता और मुक्तछ्न्द कविता दोनो को एक दूसरे से गृहण करने की आवश्यकता है।आज सर्दी ज्यादा थी आने का मेरा मन नही था फिर मैने सोचा –यदि मेरा सम्मान होता या मेरी किताब पर समीक्षा होती तो मै अवश्य जाता उसी भाव से चला आया।भारतेन्दु पर यानी मुझ पर गोष्ठी है।इनकी कविताओ पर कहना यानी स्वयं पर ही कहना होगा।‘ उन्होने गालिब निराला और नागार्जुन का उन्होने उल्लेख करते हुए कविता को समग्रता मे देखने की बात पर बल दिया। प्रो.राजेन्द्र गौतम ने भारतेन्दु मिश्र के अनेक नवगीतो का उल्लेख करते हुए हमारे समय का उल्लेखनीय कवि बताया।उन्होने कहा- ‘भारतेन्दु मिश्र का एक नवगीत समकालीन नवगीत की सिग्नेचर ट्यून है-बांसुरी की देह दरकी/और उसकी फांस पर जो फिर रही थी/एक अंगुली चिर गयी है।रक्त रंजित हो गये है/ मुट्ठियो के सब गुलाब/एक तीखी रोशनी मे/ बुझ गये रंगीन ख्वाब/कही नगे बादलो मे/ किरन बाला घिर गयी है।गूंज भरते शंख जैसे खोखले वीरान गुम्बद/थरथराते आग मे इस गांव के बेजान बरगद/नजाने विश्वास की मीनार/कैसे गिर गयी है।..ऐसे कवि ने नवगीत लिखना 2010 से बन्द कर दिया है।यह चिंता की बात है ।कविता की मुख्यधारा मे नवगीत को भी भी शामिल करके देखना चाहिए।‘
प्रसिद्ध कवि और नयी कविता के प्रवक्ता-मदन कश्यप ने कहा-‘मेरी शिक्षा मुजफ्फरपुर मे हुई आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी मेरे गुरु थे,और नवगीत की पहली किताब संपादित करने वाले राजेन्द्र प्रसाद सिंह भी उसी शहर के थे तो मुझे नवगीत गीत और छन्द का थोडी समझ तो है लेकिन जब गीतो मे वाक्य नही बनते तब वह निरर्थक लगने लगते हैं।चाहे जितने बिम्ब और प्रतीक क्यो न हों।नागार्जुन और निराला के गीतो मे इसका निर्वाह सदैव होता है।छन्दमुक्त कविताएं साफ साफ समझ मे आती हैं।भारतेन्दु जी को बधाई।’इस अवसर पर आजकल के पूर्व संपादक डा.योगेन्द्र दत्त शर्मा ने कहा-‘मै भारतेन्दु मिश्र को बधाई दे ता हू इतने सुन्दर नवगीतो के लिए लेकिन उनसे आग्रह करूगा कि वे नवगीत लिखना जारी रखें।’इस अवसर पर देवेश कुमार देवेश जी ने अपनी बात रखते हुए कहा-‘भारतेन्दु जी से और उनके संघर्ष से तब से परिचित हूं जब वो बस से चला करते थे और कविता की किताब इनके हाथ मे होती थी।अक्सर मै भी बस मे उन्हे मिल जाया करता था।मेरा भी निवेदन है कि इतने सुन्दर नवगीत उन्होने लिखे हैं उन्हे लिखते रहना चाहिए’।इस अवसर पर नवगीतकार जगदीश पंकज जी ने अनुभव की सीढी पर केन्द्रित विस्तृत आलेख प्रस्तुत किया और नवगीत पर शोध कर रहे रमाशंकर सिंह ने शोध आलेख का सार प्रस्तुत किया ।अपने अध्यक्षीय भाषण मे वरिष्ठ नवगीतकार देवेन्द्र शर्मा इन्द्र ने छन्दोबद्ध कविता और मुक्तछन्द कविता दोनो को जोडकर देखने की बात कही और भारतेन्दु मिश्र को अपने से अभिन्न और श्रेष्ठ नवगीतकार कहते हुए उन्हे बधाई दी।संगोष्ठी मे-सर्वश्री-बाबूराम शुक्ल,गीता पंडित,डा.जयकृष्ण सिंह,संतोष कुमार सिंह,कमलेश ओझा,पेम किशोर शर्मा निडर,संजय शुक्ल,ब्रजकिशोर वर्मा शैदी,डा.के.एन.शास्त्री,मीनू बाजपेयी सहित अनेक अध्यापको और शिक्षाविदो ने भी भाग लिया।भारतेन्दु मिश्र ने सम्प्रति,के सदस्यों,तथा बतकही मंडल के सदस्यो सहित सभी वक्ताओ का आभार व्यक्त करते हुए अपना एक गीत प्रस्तुत किया।संगोष्ठी का बेहतरीन संचालन वेदप्रकाश शर्मा ने किया।अंत मे गीता पण्डित ने नवगीत विमर्श की आगामी योजना की सूचना दी।